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________________ भारतीय परम्परा में मृत्यु प्रसंग विचार 167 आश्चर्य प्रगट किया। इस द्वन्द्व को हमारे यहाँ की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में सुलझाने का प्रयास किया गया है। ___इस सन्दर्भ में प्रश्न उठता है कि मृत्यु किसे कहते हैं? मृत्यु किसकी होती है? जीवन की? या जो जीवन जी रहा है उसकी? जो जीवन जी रहा है उसके पास क्या है जिसका अन्त हो जाता है? या फिर, उसके पास जो कुछ है उस सबका अन्त हो जाता है? दत्तात्रेय सम्प्रदाय के अनुसार, जैसाकि म.म. गोपीनाथ कविराज कहते हैं, प्रारब्ध के नाश होने के बाद प्राण स्थूल देह से पृथक् हो जाते हैं। उस समय पाँचों प्राण (अपान, उदान, व्यान, समान और प्राण) अपने मूल वायु (अपान) में विलीन हो जाते हैं। पाँच वासनामय विषय पाँच सूक्ष्म अव्यक्त ज्ञान-करणों में लौट जाते हैं। सभी क्रिया विकार कर्म-करणों में उपसंहृत हो जाते हैं। तदुपरान्त, ज्ञान और कर्म के वे दसों कारण निष्क्रिय होकर कर्त्ता में विलीन हो जाते हैं। कर्ता भी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन चार वृत्तियों के लीन हो जाने पर आत्मअज्ञान में लीन हो जाता है। इस अज्ञान से एक वासना-शरीर आविर्भूत होता है। सूक्ष्म शरीर की तरह पहले के शरीर को ग्रहण कर जीव पुराने जीर्ण और रुग्ण स्थूल शरीर का त्याग करता है। इसी का नाम मृत्यु है। यहाँ पाँच प्राण की बात कही गई है। इसमें अपान का मूल पृथ्वी, उदान का जल, व्यान का अग्नि, समान का वायु और प्राण का मूल आकाश है जिसके संयोग से यानी पञ्च महाभूत से शरीर निर्मित रहता है, और जिसमें क्रमशः पाँचों प्राण विलीन हो जाते हैं। पाँच वासनामय विषय वे हैं जिन्हें पाँच ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, जिह्वा, त्वचा, नाक) द्वारा उपभोग किया जाता है और जो वापस अपने आधारों यानी अव्यक्त ज्ञान-माध्यम में सिमट जाते हैं, अर्थात् अव्यक्त हो जाते हैं। सब क्रिया-विकार या क्रिया-व्यापार अव्यक्त हो जाते हैं। तब मृतक यानी कर्ता के साथ उसके ज्ञान और कर्म अर्थात् संस्कार रह जाते हैं और वह कर्ता अज्ञान-अचेतन अंधकार में लीन हो जाता है, फिर सूक्ष्म शरीर ग्रहण करता है। इस घटना को मृत्यु कहा जाता है जिसकी व्याख्या विभिन्न मतों में विभिन्न शब्दावली से की गई है। . मृत्यु की इस व्याख्या से इतना स्पष्ट होता है कि भारतीय परंपरा में मृत्यु का मतलब अन्त नहीं है। शरीर के तत्त्वों का, प्राण-वायु का अपने-अपने आधार में मिल जाना, स्थूल शरीर से उसका पृथक् होना और फिर सूक्ष्म शरीर का उद्भव होना, ये सारी बातें मृत्यु से जुड़ी हई हैं। अन्त की बात तो मात्र स्थूल देह के स्वरूप के अन्त तक ही रह जाती है। कर्ता या जीव या व्यक्ति के एक पक्ष या एक आयाम - उसका स्थूल शरीर का अन्त प्रारब्ध के 3. कविराज, म. म. गोपीनाथ, “आदिगुरु दत्तात्रेय और अवधूत दर्शन', भारतीय संस्कृति और साधना, प्रथम खंड, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, 1963, पृ. 204 |
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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