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________________ भारतीय परम्परा में मृत्यु प्रसंग विचार - हेतुकर झा “किमाश्चर्य?” यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि इस संसार में आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया। अहन्य हनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्। शेषाः स्थवर मिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् / / अर्थात् संसार में सब जानते हैं कि मृत्यु निश्चित है; जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु होती ही है; नित्य असंख्य लोग मरते हैं; फिर भी जो जीवित हैं, जिनकी मृत्यु भी निश्चित् है, वे सब जीवित रहने की लालसा रखते हैं; सारे छल.प्रपंच में लगे रहते हैं। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या है! ' युधिष्ठिर का उत्तर एक शाश्वत् सत्य है। सृष्टि के आरंभ से जबसे' मनुष्य को ज्ञान है वह पृथ्वी के जिस क्षेत्र में हो या जिस समाज में हो, हर प्राणी के जीवन का आज तक अन्त होते देखा है। योगवासिष्ठ के वैराग्य प्रकरण के नवें श्लोक में राम वसिष्ठ से कहते हैं कि “मानव की आयु की कुछ भी स्थिरता नहीं और अत्यन्त चंचलता से परिपूर्ण है, वह चाहे जब समाप्त हो जाया करती है। मृत्यु अत्यन्त कठोर होती है . . . यौवन पर मानव गर्व किया करता है और . . . क्या-क्या . . . कर्म करता है, मोह में ही समाप्त हो जाया करता है।” राम की उक्ति में दोनों बाते हैं, यह कि जीने की लालसा सबों को साधारणतया रहती ही है; मृत्यु नहीं हो, यह इच्छा उतनी ही सत्य है जितनी मृत्यु / मृत्यु और जीवन के इस द्वन्द्व के प्रसंग पर युधिष्ठिर मौन रहे और मृत्यु की सत्यता के आगे जीने की लालसा पर 1. महाभारत, यक्ष-युधिष्ठिर संवाद, त्रयोदशाधिक त्रिशततमोध्यायः, श्लोक 116 | 2. योगवासिष्ठ, प्रथम खंड, संपादक एवं हिन्दी अनुवाद, श्री रामशर्मा आचार्य, संस्कृति संस्थान, बरेली, उत्तर प्रदेश, 1996, पृ. 163|
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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