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________________ 164 मृत्यु की दस्तक या दृष्टा निखिलाथसंगशमनी स्पृष्टा व पुष्पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी। प्रत्यासन्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता न्यस्तातच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः / / तुलसीजी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है। उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है, उन्हें प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते हैं, सोचने से मृत्यु दूर भाग जाती है। तुलसी का वृक्ष लगाने से भगवान की संनिधि प्राप्त होती है और उन्हें भगवान के चरणों पर चढ़ाने से मोक्षरूप महान् फल की प्राप्ति होती है। ऐसे तुलसीजी को हमारा प्रणाम / गंगाजी की महिमा पुराणों में इस प्रकार वर्णित है - . तीर्थानां तु परं तीर्थ नदीनामुत्तमा नदी। मोक्षदा सर्वभूतानां महापातकिनामपि।। - 43/53 गंगा गंगेति यो ब्रयाद योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।। गंगाजी तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ, नदियों में उत्तम नदी तथा सम्पूर्ण प्राणियों और महापापियों को भी मोक्ष देने वाली है। और तो और, सैकड़ों कोसों की दूरी से भी जो “गंगा-गंगा” की रट लगाता है, वह समस्त पापों से छूटकर विष्णु के धाम में चला जाता है। भगवत्प्रसाद का माहात्म्य भी शास्त्रों में भली-भाँति वर्णित है। पद्म पुराण में आया है - विष्णुप्रसादनिर्माल्यं भुक्त्वा धृत्वा च मस्तके। विष्णुरेवभवेन्मयॊ यमशोक विनाशनः / . अर्चनीयो नमस्कार्यो हरिरेव न संशयः / / श्री विष्णु के प्रसाद रूप निर्माल्य को खाकर और मस्तक पर धारण करके मनुष्य साक्षात् विष्णु-रूप हो जाता है और यमराज से होने वाले शोक का नाश करने वाला बन जाता है। वह पूजन तथा वन्दन के योग्य श्रीहरि का ही स्वरूप है - इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। प्रसाद शब्द के संस्कृत में कई अर्थ होते हैं। भगवान् एवं महापुरुषों की दया, अन्तःकरण की निर्मलता एवं पवित्रता तथा भगवान को अर्पित किया हुआ नैवेद्य - ये सभी प्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हैं। अतएव ये सभी अमृत हैं, क्योंकि इनमें समस्त दुःखों की निवृत्ति होकर मनुष्य परमपद को प्राप्त हो जाता है। नैवेद्य की महिमा ऊपर सूत्र-रूप से बतायी गयी
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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