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________________ अमरत्व पर विषरूपी मृत्यु का तांडव ___- अजय कुमार श्रीवास्तव आत्मा ही अमृत है। ऐसा हमारे शास्त्रों का मत है। “न मृत्यो अमृतः” जो मृत न हो वही अमृत है। अर्थात् - अमृत कहते हैं मृत्यु के अभाव को, मृत्यु ही जीव के लिए सबसे बड़ा भय है। आत्मा तो सदा अमर है। उसका न कभी जन्म होता है और न मृत्यु। गीता के अनुसार - न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः / अजो नित्यःशाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे / / यह आत्मा किसी काल में न तो जन्म लेती है और न मरती ही है तथा यह न उत्पन्न होकर फिर होने वाली है; क्योंकि यह अजन्मी, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती। परन्तु अनादि अविद्या के वशीभूत हुआ यह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल बैठा है और इस पंचभौतिक शरीर में ही, जो प्रकृति का कार्य होने के कारण परिणामी और नश्वर है - इसकी “अहं” बुद्धि हो रही है। यही कारण है कि यद्यपि उपर्युक्त भगवद्वाक्य के अनुसार शरीर के नाश के साथ आत्मा का नाश नहीं होता, फिर भी अज्ञानवश शरीर के नाश को यह अपना नाश मानने लगा है, शरीर के सुख को अपना सुख और शरीर के कष्ट को अपना कष्ट मानता है। शरीर के सुख के लिए यह अनेक अवैध आचरण पापाचरण करता है और फलतः बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्कर में पड़कर दुःखी होता है। - यह मृत्यु-भय चींटी से लेकर हाथी तक और कीट-पतंगादि निकृष्ट योनियों से लेकर उत्तम से उत्तम देवादि योनियों तक सबको समान रूप से घेरे हुए है। यद्यपि शास्त्रों में देवयोनि को अमर बतलाया है एवं संस्कृत-कोश में देवताओं का एक नाम “अमर” भी आता है - "अमरा निर्जरा देवाः” तथापि देवता वास्तव में अमर नहीं हैं। उनका अमरत्व अपेक्षाकृत है - वे हम मर्त्यलोक के निवासियों की अपेक्षा अधिक दीर्घजीवी होते हैं। उनकी आयु हम लोगों की आयु से सैकड़ों गुणा लम्बी होती है। उनका अहोरात्र हमारे एक वर्ष के बराबर
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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