________________ 140 . . मृत्यु की दस्तक की जलसमाधि, कुमारिल भट्ट का आत्घाती प्रायश्चित्त विधान, हाड़ारानी का स्वयं से. शिरोच्छेदन को हमारा इतिहास न जाने कितना सराहता और प्रसन्न होकर गाता फिरता है। हाँ, उनके मन में ऊँचा आदर्श और महान् उद्देश्य भले ही हो पर आत्महत्या को समाज बड़ा ही गय और निंद्य तथा दूषित माना जाने का आदी है। उसे समझदारी की बात नहीं मानते बल्कि मानसिक असंतुलन का परिणाम मानते हैं। यह जीवन का तिरस्कार तो है ही। क्या अच्छा होता कि आत्मकेन्द्रता छोड़कर वे लोग औरों की सेवा-सुश्रूषा, सर्वक और सर्वतः सहायता तथा सर्वदा और सर्वथा सहकारिता और सहचारिता के प्रचार-प्रसार में जीवन अर्पण कर देते। मरने की तिथि, मरने का समय, मरने की विधि और मरने का कारण, ऐसे भी देखे जाते हैं जिनका औचित्य किसी की समझ में नहीं आता, विशेषकर ऐसी दशा में जब व्यक्ति मारा जाता है, अपने मन से मरता है या खुशी-खुशी मरण चुनता है। महात्मा गांधी, श्रीमती इन्दिरा गांधी को गोली से मारा गया। स्वामी दयानन्द, सुकरात को ज़हर पिलाया गया। क्या कारणकार्य समझ में आते हैं? उनके कर्म क्या इसी योग्य थे? श्री गोपीनाथ कविराज, रामकृष्ण जी परमहंस कैंसर से मरे। इस जन्म के कर्मों के कारण या पिछले जन्मों के? योगी अरविन्द मधुमेह से मरे। त्र्यंबक शास्त्री कुष्ठ रोग से मरे। कर्म और फल का संबन्ध कहाँ से और किधर से स्थापित किया जाये? क्रान्तिकारी फाँसी के फन्दे को चूमकर खुशी-खुशी लटकते रहे। जीवन की समाप्ति ही तो मृत्यु है? एक शरीर छोड़कर जीव दूसरा शरीर धारण कर लेता है, अपने से या विवशतावश? लगता है मृत्यु मात्र सपना है जो कभी घटता ही नहीं। उसे देखते केवल और ही हैं, स्वयं को कहीं और कभी नहीं दीखता।। कहते हैं कि हमारी पृथ्वी सौरमंडल का केवल दो अरब वर्ष पुराना ग्रह है। इस ब्रह्माण्ड में इसी की उम्र बहुत कम है, औरों से अरबों-खरबों वर्ष बाद की। दिक्काल में आदमी है क्या? उसे महान् भ्रम है कि वह आत्मा है, परमात्मा है, ब्रह्म है, पर सच तो यह है कि वह विश्व हेतु की ही नहीं स्वयं अपनी निगाह में भी कुछ नहीं है। इस विशाल बह्माण्ड में मनुष्य ही नहीं जीव नाम के गुण-धर्म वाले किसी अभिधेय पदार्थ का भी तो अस्तित्व नहीं है। विज्ञान के प्रमाण प्रवीण और तर्ककुशल प्रज्ञावादियों का दृढ़ विश्वास है कि मनुष्य के सबसे निकट का तारा भी चार प्रकाश वर्ष (वहाँ से चला प्रकाश चार वर्ष बाद हमारी आँख तक पहुँच पाता है) - एक प्रकाश वर्ष = 9.5 X 1015 मीटर दूरी पर है, एक सेकण्ड में प्रकाश 3 x 10 मीटर या 186000 मील चला करता है। इस सतत विस्तरणशील ब्रह्माण्ड में चार वर्ष में वह तारा कहाँ चला जाता है कुछ ज्ञात नहीं। अतः आकाश मंडल के सारे चमचमाते तारे झूठी जगह पर दिखते हैं और कहाँ हैं कुछ पता नहीं। हम न तो कुछ हैं और न ही कुछ जानते हैं। मृत्यु सदा यही खबर देती रहती है कि हम कुछ भी नहीं हैं। मेरा कुछ जानना इंसान का सबसे बड़ा धोखा है, झूठा दंभ है। और तो और, हम इतना भी तो नहीं जानते