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________________ प्रस्तावना असाध्य हो तो) साधक को सल्लेखना करने का निर्देश दिया है। आत्महत्या और सल्लेखना में अन्तर स्पष्ट करते हुए लेखक ने मृत्यु के इस स्वेच्छावरण को परम आध्यात्मिक भावपरिष्कार की चिकित्सा की संज्ञा से अभिहित किया है। श्री सुधीर कुमार राय ने जैनाचार्य शिवार्थ रचित भगवती आराधना के आधार पर समाधिमरण की व्याख्या प्रस्तुत की है। इसके अनुसार मरते समय की आराधना ही यथार्थ आराधना है। मरते समय जो आराधक होता है उसके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र और तप की साधना को “आराधना' कहा जाता है। तीर्थंकरों द्वारा जिनागम में उल्लेखित मरण के सत्रह प्रकार बताये गये हैं जिन्हें संक्षिप्त कर भगवती आराधना के ग्रंथकार ने पांच तक सीमित किया है। व्याख्या प्रज्ञप्ति तथा स्थानांग में मरण के दो-दो भेद बताये गये हैं। इन मरण प्रकारों के क्रमशः बारह तथा अन्त में दो की भी चर्चा की गयी है। अन्त में लेखक ने सल्लेखना के विधि-विधानों का विस्तार से उल्लेख किया है। श्री सियाशरण पाण्डेय ने चिकित्सा विज्ञान एवं जैन धर्म की दृष्टि से जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है। विज्ञान आत्मा की मरणता और पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करता तथा मृत्यु को जीवन का सर्वथा अन्त मानता है। धार्मिक आध्यात्मिक दृष्टि में मृत्यु जीवन का अन्त नहीं, मात्र शरीर का परिवर्तन है। जैन धर्मानुसार आत्मा और पुद्गल का संयोग ही जीवन का मूल तत्त्व है। पुद्गल द्वारा जीव को आवृत्त कर लेना ही बंधन है, तथा इनका संबंध-विच्छेद ही मृत्यु / ओज-आहार और आयुष्य का क्षीण होना मृत्यु है। लेखक ने अन्त में पुनर्जन्म की जैन अवधारणाओं पर प्रकाश डाला है। प्राणी के तीन शरीर - औदारिक, तेजस और कार्मेण में अंतिम दो सूक्ष्म हैं जो मृत्यु के पश्चात् भी रहते हैं। इनसे युक्त रहते हुए आत्मा को औदारिक (स्थूल) शरीर को त्यागकर पुनर्जन्म लेना पड़ता है। सुश्री रेणु द्विवेदी ने सिख धर्म में मृत्यु के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। जीवन मृत्यु की सत्ता का आधार है। जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे इस संसार में मृत्यु अवश्यंभावी है। किन्तु मृत्यु पंचभौतिक शरीर की होती है, जीव तो अविनाशी है। धर्मशास्त्रों की आध्यात्मिक दृष्टि को सिख धर्म में भी मान्यता मिली है। लेखिका ने जीव की अमरता तथा पूर्व एवं पूर्व जन्म की अवधारणा को रेखांकित करते हुए सिख धर्म के आदि प्रवर्तक गुरु नानक की रचनाओं में जन्म और मृत्यु के विचार की तलाश का प्रयास किया है। सिख धर्म गुरुओं का विचार है कि जीव अपने "किरत धर्म" अर्थात किये गये कर्मों के अनुसार ही जन्म ग्रहण करता है और मृत्यु को प्राप्त करता है। माया के कारण कर्मोपभोग के लिए जीव शरीर धारण करता है, कर्मोपभोग पूर्ण हो जाने पर शरीर का त्याग कर देता है। मृत्यु के निश्चित् होने पर भी जो ईश्वर की कृपा प्राप्त कर लेता है वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है, और जन्म-मरण के चक्र से छूटकर ईश्वर में समा जाता है। सिख धर्म में इसी अवस्था को जीव की अमरत्व प्राप्ति की संज्ञा से अभिहित किया गया है।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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