________________ 128. मृत्यु की दस्तक कर रही थी और काल देवता का बयान है कि वे भी दोषी नहीं हैं, यह तो मृत बालक का कर्मफल था। सर्प, मृत्यु, काल सभी निमित्त मात्र हैं। गौतमी शिकारी से सर्प को मुक्त कर देने को कहती है। यह थी भारतीय दर्शन की मृत्यु-संबंधी धारणा। “मृत्यु" एक रहस्य है जो आज भी समझा नहीं जा सका है। सर्वत्र एक मान्यता है कि “आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर'। फिर भी मन नहीं मानता और प्रबुद्ध मनीषी लगातार उसका चिंतन करते रहते हैं। आदिम जाति के लोग भी "मृत्यु क्या है, क्यों होती है?" पर विचार करते थे तो अत्यंत आधुनिक विज्ञानी भी इसी प्रश्न से जूझ रहे हैं। और जब मृत्यु आती है तो दार्शनिक, वैज्ञानिक, ज्ञानी और पण्डित अवाक् हो खड़े रह जाते हैं। किसी का कोई बस नहीं चलता। आधुनिक विज्ञान ने बड़ी प्रगति की है, बहुत से रहस्य खुले हैं, जीवन की अवधि बढ़ी है, अकाल मृत्यु की घटनाएँ कम हुई हैं फिर भी मृत्यु कब, क्यों, कैसे आयेगी कोई नहीं जानता। इस असहायता का वर्णन महर्षि अरविन्द सावित्री में बड़े सूक्ष्म ढंग से करते हैं - सावित्री के शब्दों में - भान हुआ हम नहीं अकेले, कोई आया है, चेतन, विशाल और दारुण आयी है कोई मौन, अपरिचित छाया कालिमा से उसकी बुझा है मध्याह्न का आलोक चतुर्दिक छा गया है एक भयकारी सन्नाटा मौन है पक्षी कलरव, मौन है पशुओं की चीत्कार भर गया है जगत आतंक और वेदना की टीस से , और उस निराकार अनाम मौन से .. प्रगटी, किसी निष्ठुर दूरवर्ती देवता की छाया मायामय विश्वविलीन होता उसकी. शून्य सत्ता में। मृत्यु के आगमन की अनुभूति शायद कुछ ऐसी ही होती है। आदिम काल से मानव इस निर्मम नियति के विरुद्ध संघर्ष करता रहा है और यह केवल सोचने-समझने वाले प्राणी की समस्या है, मानवेतर प्राणी, पशु, पक्षी, जीव, जन्तु, वृक्ष, पादप सभी सहज भाव से इसे स्वीकार कर लेते हैं। आदिम मानव "अज्ञात” से भयभीत था, उसका ज्ञान सीमित था। वह देखता था कि उसका साथी जो अभी बोल रहा था, सहसा चुप क्यों हो गया, सांस क्यों नहीं लेता, हिलताडुलता क्यों नहीं? अपनी तर्कशक्ति से वह कहता है "शायद यह शत्रु ओझा की शरारत है या किसी अज्ञात देवता का कोप? शरीर में क्या था जो निकल गया?” अस्पष्ट रूप से वह "आत्मा की चर्चा करता था। मृत्यु से बचने के लिये वह बलि देता, पूजा-पाठ करता, ओझा की सहायता लेता। “शव" को सुरक्षित करता, उसकी पूजा करता। उसका प्रश्न था क्या मृत्यु के बाद जीवन शेष होता है और मृत्यु आती क्यों है?