SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु की अवधारणा प्राचीन शास्त्र और आधुनिक ज्ञान - भानुशंकर मेहता भारत का महाकाव्य है महाभारत और इसके अंतर्गत कृष्ण-अर्जुन संवाद आता है जो श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से विख्यात है और सनातनधर्मियों के लिये “पवित्र ग्रंथ की" मान्यता प्राप्त है। यद्यपि गीता में बहुत कुछ है पर वर्तमान प्रसंग की दृष्टि से उसका आरंभ “मृत्यु” के प्रश्न से ही होता है। अर्जुन दोनों ही पक्ष की सेनाओं में खड़े अपने प्रियजनों को देखकर विषाद से भर जाता है और विचार करता है कि क्या मुझे इन्हें मार डालना है। वह अपनी मृत्यु से विचलित नहीं है पर दूसरों की मृत्यु नहीं चाहता। श्रीकृष्ण उसे समझाते हुए कहते हैं कि संसार का नियम है कि “जो जन्मा है वह मरेगा और मरने पर पुनः जन्म लेगा।" इस प्रकार श्रीकृष्ण भारतीय दर्शन की एक मान्यता स्थापित करते हैं - जन्म-मरण के चक्र की। वे यह भी स्थापित करते हैं कि देह में स्थित आत्मा नित्य सनातन है, शाश्वत् है और देह के नष्ट होने पर नष्ट नहीं होता। देह और आत्मा के संबंध को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जैसे हम पुराने कपड़े त्यागकर नये पहन लेते हैं वैसे ही आत्मा भी नया शरीर धारण करती है। अस्तु “मृत्यु के लिये शोक करने की जरूरत नहीं है। - इसी महाकाव्यं के शांति-पर्व में शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह के पास श्रीकृष्ण के साथ युधिष्ठिर आते हैं, और पितामह युधिष्ठिर को उपदेश देते हैं। यहाँ व्यास ने कहा है कि मृत्यु एक व्यक्ति है, अत्यंत रमणीय और सम्मोहक / वास्तव में वह (मृत्यु) एक कमनीय और रमणीय युवती है। यह मृत्यु का अनूठा काव्य है। - आगे अनुशासन-पर्व में पितामह मृत्यु का कारण बताते हुए गौतमी की कथा सुनाते हैं। गौतमी के पुत्र को सर्प ने काट लिया। शिकारी अर्जुन सर्प को पकड़कर गौतमी के समक्ष लाता है। सर्प अपने बचाव में कहता है कि दोष मेरा नहीं मृत्यु का है - उसी के आदेश पर मैंने ऐसा किया। मृत्यु आकर कहती है - दोष मेरा नहीं है, मैं तो काल का आदेश पालन
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy