________________ 118 . मृत्यु की दस्तक की ध्वनि के साथ उपस्थित व्यक्ति उस स्थान की प्रदक्षिणा करते हैं। भिन्न सम्प्रदायों में इस पद्धति में भेद पाये जाते हैं। इस प्रकार निर्मित रचना मृत्यु का प्रतीक समझी जाती है और जीवलोक को मृत्युलोक से पृथक् करने के लिये मंत्रोच्चारण करते हुए मिट्टी के ढेरों, पत्थरों और वृक्षों की शाखाओं से सीमा रेखा बना दी जाती है। अन्त्येष्टि-क्रियाएँ पुनः-पुनः दुहरायी जाने तथा विस्तृत होने पर भी अत्यन्त साधारण हैं। साधारणतया धर्म के किसी भी क्षेत्र में आदिम आस्था इतने ज्वलन्त रूप में विद्यमान नहीं है जितना अन्त्येष्टि-क्रियाओं में है। परलोक इस लोक का दूसरा प्रतिरूप है और मृतक की आवश्यकताएँ भी वे ही हैं जो जीवित व्यक्ति की होती हैं। मृतक संस्कार की सभी क्रियाओं में मृत व्यक्ति के विषय-भोग तथा सुख-सुविधाओं के लिये प्रार्थनाएँ की जाती हैं। हमें उसके आध्यात्मिक लाभ अथवा मोक्ष के लिये इच्छा का बहुत कम संकेत मिलता है। जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति की प्रार्थनाएँ बहुत कम हैं। उसका उदय कर्मकाण्ड के विकास की नवीनतम शृंखला में जाकर ही हो सका। संपूर्ण संस्कार प्रायः आदिम प्रकार का है और वह अत्यंत सुदूर अतीत में उद्भूतं विश्वास की सूचना देता है। आदिम विश्वासों और पद्धतियों के साथ-साथ इस संस्कार में इहलौकिक परिष्कार और पारलौकिक परमार्थ के कतिपय तत्त्व वर्तमान हैं। व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक स्वच्छता और स्वास्थ्य का इसमें पूरा प्रावधान है। वियोग से उत्पन्न शोक को दूर करने के लिये इसमें विविध उपाय किए गए हैं। प्रेतात्मा के ऊर्ध्वगमन और आध्यात्मिक कल्याण के लिये इसमें पर्याप्त संकेत मिलते 12. दशगात्र श्राद्धकर्म - इसे दशगात्र पिण्डदान भी कहते हैं। लौकिक- परम्परानुसार मृत्यु अथवा दाह-संस्कार के दिन से कर्ता मृतक के अंगपूर्णार्थ दस दिन तक, प्रतिदिन एक पिण्ड के हिसाब से दस पिण्ड का दान करता है। ये दस पिण्ड क्रमशः सिर:पूरक, कर्णाक्षिकम्य, नासिकापूरक, मोसभुजपक्षपूरक, नाभि, लिंग, गुदापूरक, जानुजंघापादणुपूरक, सर्वमर्मपूरक, सर्वनादिपूरक, दन्त लोभादिपूरक, वीर्यपूरक एवं पूर्णतत्त्वत्रिप्तक्षुदीयपर्ययपूरक होते हैं। भविष्यपुराणानुसार गृहद्वारे श्मशाने वा तीर्थ देवगृहेपि वा। यत्राद्ये दीयते पिण्डस्त्र सर्व समाचरेत / / अर्थात् पिण्डदान घर के दरवाजे पर, श्मशान में, तीर्थ में अथवा देव मंदिर में करना चाहिए। आश्वलायन के अनुसार