SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 98 . मृत्यु की दस्तक है। वैदिक परम्परा की इच्छा-मृत्यु से ऐसा लगता है कि मरने वाले के पास मृत्यु को रोकने की क्षमता है किन्तु जैन परम्परा की इच्छा-मृत्यु में मरने वाले में ऐसी क्षमता का अभाव जान पड़ता है। वह जीवन से संतुष्ट होकर शरीर का त्याग कर सकता है लेकिन मृत्यु को रोक नहीं सकता है। सिरेनाइक की आत्महत्या एक सामान्य आत्महत्या की तरह है। इसकी तुलना में सिनिक लोगों की आत्महत्या सबसे भिन्न है। इसमें न तो जीव के प्रति साधारण आत्महत्या की तरह दुःख की विवशता है और न जैन इच्छा-मृत्यु की तरह जीवन की संतुष्टि है, बल्कि जीवन के प्रति उपेक्षा भाव है। जीवन और मृत्यु जीवन और मृत्यु एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों को बिल्कुल अलग-अलग करके नहीं समझा जा सकता है। शरीर का धारण करना जन्म या जीवन है, और शरीर का त्यागना मृत्यु है। जन्म के बाद मृत्य और मृत्यु के बाद जन्म की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। कहा जाता है कि सामान्यतः जो जन्म लेता है, वह मरता है और जो मरता है वह जन्म लेता है। परन्तु जो मुक्त हो जाता है उसके विषय में यह मान्यता है कि वह फिर शरीर धारण नहीं करता या जन्म नहीं लेता है। जन्म लेने वाले के विषय में मरने की बात पूरी तरह मान ली गई है परन्तु शास्त्रों में एक-दो ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जिनसे जन्म के बाद मृत्यु की बात खंडित हो जाती है। हनुमानजी त्रेतायुग में थे, द्वापर में थे और आज भी हैं। इनके जन्म की कथा तो मिलती है किन्तु मरने की बात कहीं नहीं मिलती है। महाभारत में एकमात्र अश्वत्थामा की चर्चा मिलती है जो द्रोणाचार्य के पुत्र थे। उनके विषय में भी कहा जाता है कि वे मरे नहीं और आज भी जीवित हैं। मृत्यु निश्चित् अथवा अनिश्चित् / मृत्यु के विषय में कहा जाता है कि मृत्यु बिल्कुल निश्चित् होती है। किसी व्यक्ति की मृत्यु जिस समय, जिस स्थान पर और जिस माध्यम से होने को होती है ठीक उसी समय, उसी स्थान पर तथा उसी माध्यम से होती है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। अतः मृत्यु सर्वथा निश्चित् है। किन्तु इस निश्चितता का बोध न तो मरने वाले को होता है और न अन्य किसी को। यदि मृत्यु के विषय में कुछ पहले से ज्ञात होता तो मरने वाला यथाशक्ति अपनी सुरक्षा का उपाय करता। लेकिन ऐसा नहीं होता है। मृत्यु हो जाने के बाद अन्य लोग बताते हैं कि अमुक व्यक्ति की मृत्यु इस प्रकार हुई है। अतः मृत्यु अनिश्चित् भी है। इस तरह मृत्यु चाहे जितनी भी निश्चित् हो उसकी निश्चितता के बोध का अभाव उसे अनिश्चितता की कोटि में ला देता है। मृत्यु साध्य या साधन मृत्यु हमेशा साधन के रूप में ही जानी जाती है। यह साध्य नहीं बनती है। साधकों की
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy