________________ ..श्रीमदावश्यकसूत्रम् : अध्ययनं 1 .. - // अथ सूत्रस्पर्शि-नियुक्तिः // नंदिअणुयोगदारं विहिवदुवुग्घाइयं च नाऊणं / काऊण पंचमंगल श्रारंभो होइ सुत्तस्स // 1026 // कयपंचनमुक्कारो करेइ सामाइयंति सोऽभिहियो। सामाइयंगमेव य जं सो सेसं तयो वुच्छं // 1027 // - करेमि भंते ! सामाइयं, सव् सावज्जं जोगं पञ्चक्खामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समाजापानि तरस भंते ! प्रडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि (सूत्रं 1) अक्खलिअसंहिवाई वक्खाणचउक्कए दरिसिश्रमि। सुत्तफासिनिज्जुत्तिवित्थरत्यो इमो होइ॥२८॥ करणे 1 भए 2 अ अंते 3 सामाइअ 4 सव्वए 5 अवज्जे 6 श्र। जोगे७ पञ्चक्खाणे = जीवजीवाइ 1 तिविहेणं 10 // 1021 // (भा०) नाम ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे अ / एसो खल करणस्स उ निक्खेवो विहो होह // 152 // जाणगभविअइरित्तं सन्ना नोसन्नओ भवे करणं / सन्ना कडकरणाई नोसन्ना वोससपओगे // 153 // वोससकरणमणाई धम्माईण परपच्चयाजो(यज़ो)गा। साई चक्खुप्फासिअ-मन्भाइम-चक्खुमणुमाई // 154 // संघायभेअ-तदुभयकरणं इंदाउहाइ पचक्खं / दुअअणु मईणं पुण छउमत्याईणापच्चक्खं // 155 // जोवमजीव पाओगिच चरमं कुसुभरागाई। जीवप्पओगकरणं मूले तह उत्तरगुण अ // 156 // जं जं निलीवाणं कोरइ जावप्पओगओ तंतं। वनाइ रुवकमाइ वावि अज्जीवकरणं तु॥१५७॥ जीवप्पओगकरणं दुविहं मूलप्पओगकरणं च / उत्तरपओगकरणं पंच सरोराई पढमंमि // 158 // ओरालियाइआईओहेणिअरं पओगओ जमिह / निप्फण्णा निप्फजई आइल्लाणं च तं तिण्हं // 159 // सोसमुरोअरपिट्ठी दो बाहू ऊरुआ य अडंगा। अंगुलिमाइ उवंगा अंगोवंगाणि सेसाणि // 160 // केसाईउवरयणं उरालविउव्वि उत्तरं करणं। ओरालिए विसेसो कन्नाइविणसंठवणं // 161 // आइल्लाणं. तिण्हं संघाओ साडणं तदुभयं च / तेआकम्मे संघायसाडणं साडणं वावि // 162 // संगायमेगसमयं तहल परिसाडणं उरालंमि / संघायणपरिसाडण 'खडागभवं तिसमऊणं // 163 // एवं जहन्नमुक्कोसयं तु पलिअत्ति तु समऊणं।