________________ 4] [ श्रीमदायमसुधासिन्धुः / द्वादशमी विनागर ऽविहु भासत्रो इहं जेठो / रायणियवंदणे पुण तस्सवि श्रासायणा भंते ! // 712 // जइवि वयमाइएहि लहुश्रो सुत्तत्थ-धारणापडुयो / वक्खाणलद्धिमंतो सो चिय इह घेप्पई जेट्ठो // 713 // श्रासायणावि णेवं पडुच्च जिणवयणभाप्तयं जम्हा / वंदणयं राइणिए तेण गुणेणंपि सो चेव // 714 // न वयो एत्य पमाणं न य परियायोऽवि णिच्छयमएणं / ववहारयो उ उज्जइ उभयनयमयं पुण पमाणं // 715 // निच्छययो दुन्नेयं को भावे कम्भि वट्टई(ए) समणो ? / ववहारयो उ कीरइ जो पुनठियो चरित्नमि // 716 // ____(भा०) ववहारओऽवि हु पलवं जं छउमत्थंपि वंदई अरहा / जा होइ अणाभिण्णो जाणतो धंमयं एवं // 123 // एत्थ उ जिणवयणाश्रो सुत्तासायण-बहुत्तदोसायो / भासंग-जेट्ठगस्स उ कायव्वं होइ किइकम्मं // 717 // दुविहा य चरित्तमी वेयाच्चे तहेव खमणे य / गियगच्छा थराणमि य सीयणदोसाइणा होति // 718 // इत्तरियाइविभासा वेयावच्चंमितहेव खमणे य / अविगिट्ट-विगिट्ठामि य गरियो गच्छस्स पुच्छाए // 716 // उवसंपन्नो जं कारणं तु तं कारणं अतो। अहवा समाणियमी सारणया वा विसग्गो वा // 720 // इत्तरियं पिन कप्पइ अविदिन्नं खलु परोग्गहाईसु। चिट्टित्तु निसिइत्तु व तइयव्वय-रवखगट्ठाए / 721 // एवं सामायारी कहिया दसहा समासयो एसा / संजमतवडगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं // 722 // एवं सामायारि जुजंता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम अणेगभव-संचियमणंतं // 723 // अज्झवसाणनिमित्ते पाहारे वेयणा पराघाए। फासे पाणापाणु सत्तविहं मि(भि)जए श्राउं॥ 724 // दंडकससत्थरज्जू अग्गी उदगपडणं विसं वाला / सीउराहं थरइ भयं खुहा पिवासा य वाही य // 725 / / मुत्तपुरीसनिरोहे जिगणाजिगणे य भोयणे बहुसो / घंसणघोलणपीलण श्राउरस उवंकमा एए