________________ 12] [ श्रीमंदागमसुधासिन्धुः / बादशमी विभागः णमणस्स // 681 // संजमजोए अभुट्टियस्स जं किंचि वितहमायरियं / मिच्छा एतंति वियाणिऊण मिच्छत्ति कायव्वं // 682 // जइ य पडिकमियव्वं अवस्स काऊण पावयं कम्मं ! तं चेव न कायव्वं तो होइ पए पडिक्कतो॥ 683 // जं दुक्कडंति मिल्छा तं भुज्जो कारणं अपरेंतो / तिविहेण पडिवतो तस्स खलु दुक्कडं मिच्छा // 684 // जं दुक्कडंति मिच्छा तं चेव निसेवए पुणो पावं / पचक्खमुसाबाई मायानियडीपसंगो य॥६५॥ मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्ति य दोसाण छायणे होइ / मित्ति य मेराए ठियो दुत्ति दुगंछामि अप्पाणं // 686 // कत्ति कडं मे पावं डत्ति य डेवे.म तं उनसभेणं / एसो मिच्छादुक्कड-पयवखरत्थो समासेणं // 687 // कप्पाकप्पे परिणिट्ठियस्स ठाणेसु पंचसु ठियस्स / संजमनवडगस्त उ अविकप्पेणं तहाकारो॥ 688 // वारणप डेसुणणाए उवएसे सुत्तयत्यकहणाए / अपितहमेयंति तहा पडिसुणणाए तहकारो // 686 // जस्त य इच्छाकारो मिछाकारो य परिचिया दोऽवि / तइयो य तहकारो न दुल्लमा सोग्गई तस्स // 610 // श्रावस्तियं च णितो जं च अइंतो निसीहियं कुणइ / एयं इच्छं नाउं गणिवर ! तुम्भंतिए णिउणं // 611 // श्रावरिसयं च णितो जं च अइंतो निसीहियं कुणइ / वंजणमेयं तु दुहा अत्थो पुण होइ सो चेव // 612 // एगग्गस्म पसंतस्स न होंति इरियाझ्या गुणा होति / गंतब्बमवस्सं कारणमि श्रावस्सिया होइ // 613 // श्रावस्सिया उ श्रावस्सएहिं सव्वेहिं जुत्तजोगिस्स / मणवयणकाय-गुतिंदियस्स श्रावस्सिया होइ // 614 // सेज्जं ठाणं च जहिं चेएइ तहिं निसीहिया होइ / जम्हा तत्थ निसिद्धो तेणं तु निसीहिया होइ // 615 // सेन्जं ठाणं च जदा चेतेति तया निसीहिया होइ / जम्हा तदा निसेहो निसेहमइया च सा जेणं // 616 // (भा०) आवस्सियं च णितो जं च अइंतो निसोहियं कुणइ / सेजाणि