________________ [13 श्रीमदावश्यकत्रम् : अध्ययनं 1 ] . कुमुमणीहारि / पइरति समंतेण दसद्धवरणं कुसुमवासं // 546 // मणिकणगरयणचित्ते चउदिसि तोरणे विउव्वंति / सच्छत्त-सालभंजिय-मयरद्वयचिंधसंठाणे // 547 // तिन्नि य पागारवरे रयणविचित्ते तहिं सुरगजिंदा / मणिकंत्रणकविसीसग-विभूसिए ते विउति // 548 // अभंतर मज्झ बहिं विमाणजोई-भवणाहिवकया उ / पागारा तिरिण भवे रयणे कणगे य रयए य // 541 // मणिरयण-हेमयाविय कविसीसा सव्वरयणिया दारा / मध्वरयणामय चिय पडागधय-तोरणविचित्ता // 550 // तत्तो य समंतेणं कालागरु-कुंदुरुक्कमीसेणं / गंधेण मणहरेणं धूवघडीयो विउति // 551 // उकिट्ठि-सीहणायं कलयलसद्दे ण सधयो सव्वं / तित्थयरपायमूने करेंले देवा णिवयमाणा // 552 // चेइदुम-पेढछंदय यासणछत्तं च चामरायो य / जं चऽराणं करणिज्जं करेंति तं वाणमंतरिया // 553 // साहारणयोमरणे एवं जस्थिहिमं तु ग्रोसरइ / एक्कु चिय तं सव्वं करेइ भयगा उ इयरेमि // 554 // सूरोदय पच्छिमाए योगाहंतीए पुव्वयोऽईइ / दोहिं पउमेहिं पाया मग्गेण य होइ सत्तऽन्ने // 555 // श्रायाहिण पुब्वमुहो तिदिसि पडिरूवगा उ देवकया / जेट्ठगणी अराणो वा दाहिणफुचे अदूरंमि // 556 // जे ते देवेहिं क्या तिदिसि पडिरूवगा जिणवरस्स। तेसिपि तप्पभावा तयाणुरुवं हवइ रुवं // 557 // तित्थाइसेससंजय देवी वेमाणियाण समणीयो / भवणववाणमंतर-जोइसियाणं च देवीयो // 558 // के लिणो तिउण जिणं तित्थपणामं च मग्गयो तस्स / मणमादीवि णमंता वयंति सट्टाणमट्ठाणं // 551 // भवणवई जोइसिया बोद्धव्वा वाणमंतरसुरा य / वेमाणिया य मणुया पयाहिणं जं च निस्साए // 560 // (भा०) संजयवेमाणित्थी संजइ पुव्वेण पविसिउ वीरं / काउ पयाहिणं. पुव्वदविखणे ठति दिसि भागे // 116 // जोइसिय भवणवंतर-देवीओ दक्खि. ण पविसंति / चिति दक्षिणावर दिसिंमि तिगुणं जिणं का॥ 117 //