________________ मानावश्यकरत्रम् : अध्ययनं 1] - [. रोव्व कुसुमिमी पउमसरो वा जहा सरयकाले / सोहइ कुसुमभरेणं इय गगजयलं सुरगणेहिं // 101 // सिद्धत्श्व णं च(व) जहा असगवणं सणव गं असोगवणं / चूभवणं व कुसुमिभइअ गयणयलं सुरगगेहिं // 102 // अयसिवणं व कुसुमि कणिभरवणं व चंपयवणं व / तिलयःणं व कुसमिइभ गय. गतलं सुरगणेहिं // 103 // वरपडह-भेरिझल्लरि-दुहिसंख-सहिएहिं तूरेहिं / धरणियले गयगयले तूरनिनाओ परमरम्मो // 104 // एवं सदेमणुआसुराएपरिसाए परिवुडो भयवं / अभियुव्वंतो गिराहिं संपत्तो नायसंडवणं // 105 // उजाणं संपत्तो भोरुभइ उत्तमाउ सीमाओ। रूयमेव कुणइ लोसको से पच्छिए दे.से // 106 // जिणवरमणुण्णवित्ता अजणघण-स्यगविमल-संकासा / केसा खणेण नीमा खीरसरिसनामयं उदहिं // 107 // दिव्यो मणसघोसो तूरनिनामो अ सवयणेगं / खिप्पामेव निलुको जाहे पडिवजइ चरित्तं // 108 // काऊण नमोकारं सिद्धाणभिग्गहं तु सो गिण्हे / सव्वं मे अकरणिज्जं पावंति चरित्तमाख्ढो // 109 // तिहिं नाहिं समग्गा तित्थयरा जाव हुँति गिहनासे / पविणमि चरित्ते चउनाणी जाव छउमत्था // 110 // बहिआ य णायसंडे भापुतिउत्ताण नायए सब्वे / दिवसे मुहत्तसेसे कमारगामं समणुपत्तो॥ 111 // गोवनिमित्तं सकरस अागमो वागरेइ देविंदो। कोल्लागबहुल छट्ठस्स पारणे पयस वसुहाग // 461 // दूइज्जतग पिउणो वयंस तिव्वा अभिग्गहा पंच। अचियत्तुग्गहि न वसण' णिच वोस? मोणेणं // 462 // पाणीपत्तं गिहिवंदणं च तयो वद्धमाण वेगवई / धणदेव सूलपाणिंदसम्म वासऽट्टिग्गामे // 463 // रोहा य सत्त वेयण थुइ दस सुमिणुप्पलद्धमासे य। मोराए सकारं सको अच्छंदए कुवियो॥ 464 // . (भा०) भीमट्टहास हत्थी पिसाय नागे य वेयणा सत्त / सिरकण्णनासदन्ते नहऽच्छी पिट्ठी य सत्तभिआ // 112 // तालपिसायं दो कोइला य दामदुगमेव गोरगं / सर सागर सूरं ते मंदर सुविणुप्पले चेव // 113 // मोहे य झाण पवयण धम्म संघे य देवलोए य / संसारं जाण जसे धम्म परिसाए मज्झमि // 114 // मोरागमण्णिवेसे बाहिं सिद्धत्थ तीतम ईणि ! साहइ जणस्स अच्छंद पओसो छेअणे सस्को // 1 //