________________ [ श्रीमदागमसुभासिन्धुः / बादशमी किमान ईयो / वुच्छ तासि बिसेसं, जहकम पाणुपुब्बीए // 167 // पढमबीयाण पढमा, तइयचउत्थाण अभिनया बीयों / पंचमछट्ठस्स य, सत्तमस्स तइया अभिनवा उ // 168 // सेसा उ दंडनीई, माणवगनिहीश्रो होति भरहस्स। उसभस्स गिहावासे, असको प्रासि थाहारो // 16 // (भा०) परिमासणा उ पढमा, मंडलिबंधमि होइ पीया उचारग छविच्छे. आई, भरहस्स चउबिहा नीई॥३॥ नाभी विणीअभूमी, मरदेवी उत्तरा य साढा य / राया य वइरणाहो, विमाणसबट्ठसिद्धायो॥ 17 // धणमिहुण-सुरमहब्बल-ललियंगय-वइरजंघ-मिहुणे य / / सोहम्मविज्ज-अच्चुअ चक्की सबढ उसमे य ॥१॥(प्रक्षिप्ता) घणसस्थाह घोसण, जइगमण अडविवासगणं च / बहुवोलीणे वासे चिंता, घयदाणमासि तया // 171 // उत्तरकुरु सोहम्मे, महानिदेहे महब्बलो राया / . ईसाणे ललियंगो, महाविदेहे पदरजंघो // 1 // (प्रक्षि०) उत्तरकुरु सोहम्मे, विदेहि तेगिच्छियस्स तस्थ सुत्रो / रायसुय सेटिमचासत्थाहसुया वयंसा से // 172 // विजसुयस्स य गेहे, किमिकुट्ठोवद्ध जई दट्ठ। विति य ने विजसुयं, करेहि एअस्स तेगिच्छं // 173 // तिल्लं तेगिच्छसुयो, कंबलगं चंदणं च वाणिययो। दाउं श्रभिणक्खतो. तेव भवेण अंतगहो।। 174 / साहुँ तिगिच्छिऊणं, सामगणं देवलोगगमणं च। पुंडरगिणिए उ चुया, तो सुया वइरसेणस्स // 175 / पढमोऽस्थ वइरणाभो, बाहु सुबाहू य पीढमहपीटे / तेसि पिथा तित्थयरो, णिक्खंता तेऽवि तत्थेव // 176 // पढमो चउदसपुब्बी, सेसा इकारसंगविउ चउरो। बीयो वेयावच्चं, किकम्मं तइश्रश्रो कासी // 177 // भोगफलं बाहुफलं, पसंसणा जिट्ट इयर अचियत्तं, पढमो तित्थयरत्तं, वीसहि ठाणेहि कासी य // 17 // अरिहंत सिद्ध पवयणा गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीखें। वच्छलया