________________ , शिवस्तवाम ठपणा दचिर निद संगमुज्ज३ // दुवितायो / 10] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमी विभाग जलूग बिराली जाहग गो भेरी भाभीरी // 131 // उद्दे से निद्द से, निग्गमे खित्त काल पुरिसे थ। कारण पच्चय लक्खण, नए समोयारणाऽणुमेए // 140 // किं कइविहं करस, कहिं केसु कहं केचिरं हवइ कालं / कइ संतरमविरहियं, भवागरिस फासण निरुत्ती // 141 // नामं ठवणा दविए, खेत्ते काले समास उद्दे से / उद्देसुद्दे संमि अ, भावंमि अ होइ अट्ठमयो // 142 // एमेव य निह सो, अट्ठविहो सोऽवि होइ णायव्यो। अविसेसिअमुद्दसो, विसेसियो होइ निद्दे सो // 143 // दुविहंपि णेगमणयो, णिसं संगहो य ववहारो। निसगमुज्जुसुयो, उभयसरित्थं च सहस्स // 144 // नामं ठवणा दविए, खित्ते काले तहेव भावे श्र। एसो उ निग्गमस्सा, णिवखेवो छविहो होइ // 145 // जह मिच्छत्ततमाओ विणिग्गओ, जह य केवलं पनो। जह य पयासिअमेयं, सामाइअं तह पवक्खामि // 1 // (प्रक्षे०) . पंथं किर देसित्ता, साहणं अडविविप्पणट्ठाणं / सम्मत्तपढमलभो, बोद्धव्यो वद्धमाण स // 146 // // अथ भाष्यम् // (भा०) अवरविदेहे गामस्त, चिंतओ रायदारवणगमणं / साहू भिवरखनिमित्तं सत्था होणे तहिं पासे // 1 // दाणऽन्न पंथनयनं अणुकंप गुरुग कहण सम्मत्तं / सोहम्मे उववण्णो, पलियाउ सुरो महिड्डीओ // 2 // लद्भूगा य सम्मत्तं, अणुकंपाए उ सो सुविहियाणं / भासुरवरबोंदिधरो, देवो वेमाणियो जायो॥ 147 // चइउण देवलोगा, इह चेव य भारहमि वासंमि / इवखागकुले जाओ, उसभसुश्रसुथो मरीइत्ति // 148 // इवखागकुले जायो, इक्खागकुलस्स होइ उप्पत्ती / कुलगरवंसेऽईए, भरहरस सुयो मरीइत्ति // 141 // योसप्पिणी इमीसे, तइयाए समाए पच्छिमे भागे। पलियोवमट्ठभाए, सेसंमि उ कुलगरुप्पत्ती // 150 // श्रद्धभरह-मभिलुतिभागे, गंगासिंधुमझमि / इत्थ बहुमज्भदेसे, उप्परणा बु.लगरा सत्त ! 151 //