________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्युः / द्वादशमी विभागा गादं, परमोही लहइ कम्मगसरीरं। लहइ-य अगुरुयलघु(हु) तेयसरीरे भवपुहुत्तं // 44 // परमोहि असंखिज्जा, लोगमित्ता समा श्रसंखिज्जा। स्वगयं लहइ सव्वं, खित्तोवमिश्रं अगणिजीवा // 45 // श्राहारतेयलंभो, उक्कोसेणं तिरिक्खजोणीसु / गाउय जहराणमोही, नरएसु उ जोयणुकोसो // 46 // चत्तारि गाउयाई, अद्भुट्ठाई तिगाउया चेव / अड्डाइजा दुरिण य, दिवड्डमेगं च निरएसु // 47 // अधुट्ठाइयाई (ट्टगाउयाई) जहराणयं श्रद्धगा. उयंताई / जं गाउअंति भणियं तंपित्र(पड)उकोसगजहराणं // 1 // भा०) सकीसाणा पढमं, दुच्चं च सणंकुमारमाहिंदा / तच्चं च बंभलंग, सुक्कसहस्सारय चउत्थीं // 48 // श्राणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमि पुढवीं / तं चेव श्रारणच्चुय श्रोहीनाणेण पासंति // 41 // छढि हिट्ठिममझिमगेविजा सत्तमि च उवरिल्ला / संभिरणलोगनालिं पासंति अणुत्तरा देवा // 50 // एएसिमसंखिजा, तिरियं दीवा य सागरा चेव / बहुप्रयरं उपरिमगा, उड्ढ सगकप्पथूभाई // 51 // संखेजजोयणा- खलु, देवाणं श्रद्धसागरे ऊणे / तेण परमसंखेजा, जहरणयं पंचवीसं तु // 52 // उकोसो मणुएसु, मणुस्सतिरिएसु य जहरणो य / उक्कोस लोगमित्तो, पडिवाइ परं अपडिवाई // 53 // थिबुयायार जहराणो, वट्टो उक्कोसमायो किंची। अजहरणमणुकोसो य, खित्तयोऽणेगसंटाणो // 54 // तप्पागारे पल्लग पडहग झलरि मुइंग पुप्फ जवे / तिरियमणुएसु श्रोही, नाणाविहसंठियो भणियो // 55 // अणुगामियो उ श्रोही, नेरइयाणं तहेव देवाणं / अणुगामी अणणुगामी, मीसो य मणुस्सतेरिच्छे // 56 // खित्तस्स अवट्ठाणं, तित्तीसं सागरा उ कालेणं। दव्वे भिराणमुहुत्तो, पन्जवलंभे य सत्तट्ठ // 57 // श्रद्धाइ अवट्ठाणं छावट्ठी सागरा उ कालेणं / उकोसगं तु एयं, इको समयो जहराणेणं // 58 // वुड्डी वा हाणी वा, चउ. बिहाहोइ खित्तकालाणं / दव्वेसु होइ दुविहा, छविह पुण पजवे होइ // 56 //