________________ जामती ओपनियुक्तिः ] [151 (भा०) सिंगक्खोडे कलहो ठाणं पुण नत्थि (नेव) होइ चलणेसु / अहिठाणि पोहरोगो पुच्छंमि अ फेडणं जाण // 76 // मुहमूलंमि अ चारी सिरे य कउहे य पूयसकारो / खंधे पट्ठोए भरो पोमि य धावओ वसहो // 77 // (उद्देसणुपुन्वीए वुच्चत्थं वेहमाणिणो दोसा / जे य गुणा पढमाए ते वाघायंमि सेसासु // 5 // पउरन्न पाण पढमा बीयाए भत्तपाण न लहंति / तइया उवगरणहरो नत्यि चउत्थीइ सज्झाओ // 6 // पंचमिआए संखडि छट्ठीड गणस्स भेयणं जाण / सत्तमिआ गेलन्नं मरणं पुण अहमी विंति // 7 // बुद्धीए पुव्वमुहं वसहमिओ गंतु उत्तरे पासे / एवं पुव्वुत्तरओ वसहिं गिहिज निदोसं // 8 // रुइए महथंडिल्लं पेहिजा चायगो भणइ एवं / ठायं तच्चिय तुज्झ य अमंगलं कुव्वहा भंते ! // 9 // आहायरिओ लोए नगरनिवेसंमि पढमवत्थुमि / सोयाणं पेहिबइ न य दिटुं तं अमंगलयं // 10 // दिसा अवरदक्षिणा दक्विणा य अवरा य दक्षिणा पुवा। अवरुत्तरा य पुव्वा उत्तरपुन्वुत्तरा चेव // 11 // उद्दिकमेणासिं पढम पडितोहिऊण वाघाए / पीयं पडिलहिज्जा एवं उद्दसओऽहाणि // 12 // प्र०) दवे तणडगलाई अच्छणभाणाइधोवणा खेत्ते / काले उच्चाराई भावेण गिलाणकूरुवमा // 78 // - जाव गुरूण य तुझ य केवइया ? तत्थ सागरेणुवमा / केवइकालेणेहिह ? सागार ठवंति अराणेवि // 153 // पुवद्दिष्टे इच्छइ अहव भणिजा हवंतु एवइया / तत्थ न कप्पइ वासो असई खेत्ताणऽणुनायो // 154 // सकारो सम्माणो भिक्खग्गहणं च होह पाहुणए / जइ जाणउ वसइ तहिं साहम्मिअवच्छलाऽऽणाई // 155 // जइ तिनि सव्वगमणं एसु न एसुत्ति दोसुवि अ दोसा। श्रगणपहेणगुणता निययावासोऽह मा गुरुणो // 156 // गंतूण गुरुसमीवं श्रालोएत्ता कहेंति खेत्तगुणा / न य सेसकहण मा होज संखडं रत्ति साहेति // 157 // पढमाए नत्थि पढमा तत्थ उ घयखीरकूरदहिलंभो। बिइयाए बिइ तइयाए दोवि तेसिंच धुवलंभो // 158 // श्रोहासिधुवलंभो. पाउग्गाणं चउस्थिए नियमा। इहरावि जहिच्छाए तिकालजोगं च सव्वेसि // 151 // मयगहणं प्रायः