________________ 152 ] [ श्रीमदागमसुभासिन्धुः / द्वादशमी विभागः रियो कत्थ वयामो ति ? तत्थ श्रोयरिया (जागरिया) / खुभिया भणांति पढमं तं विश्र अणुयोगतत्तिला // 160 // विइयं सुत्तग्गाही उभयग्गाही श्र तइययं खेत्तं। पायरियो अ चउत्थं सो उ पमाणं हवइ तत्य // 161 // मोहुम्भवो उ बलिए दुबलदेहो न साहए जोए। तो मज्म बला साहू दुस्सेणेत्थ दिटुंतो॥ 162 // पणपरणगस्स हाणी थारेणं जेण तेण वा धरइ / जइ तरुणा नीरोगा वच्चंति चउत्थगं ताहे // 163 // ग्रह पुण जुराणा थेरा रोगविमुक्का य असहुणो तरुणा / ते अणुकूलं खेत्तं पेसंति न यावि खग्गूडे // 164 // एगपणअद्धमासं सट्ठी सुणमणुयगोणहत्थीणं / राइदिएण उ बलं पणगं तो एक दो तिन्नि // 165 // सागरिपुच्छगमणं बाहिरा मिच्छ छेय कयनासी / गिहि साहू अभिधारण तेणगसंकाइ जं चऽगणं // 166 // अविहीपुच्छा उग्गाहिएण सिज्जातरी उ रोएजा / सागारियस्स संका कनहे य सएजिया खिसे // 167 // (वसहीए वोच्छेयो अभिसंधारितयाण साहूणं / पुणरावत्ती होज़ व पयजा उज्जुश्रमईणं // 13 // प्र०) हरियच्छेयण छप्पइय घचणं किचणं च पोत्ताणं / छण्णेयरं च पगयं इच्छमणिच्छे य दोसा उ // 168 // जइया चेव उ खेत्तं गया उ पडिलेंहगा तो पाए। सागारियस्स भावं तणुए ति गुरू इमेहिं तु // 161 // उच्छू वोलिति वई तुंबीयो जायपुत्तभंडा य। वसभा जायत्थामा गामा पव्वायचिक्खल्ला // 170 // अप्पोदगा य मग्गा वसुहावि अ पक्कमट्टिया जाया / अराणक्कंता पंथा साहूणं विहरि कालो // 171 // समणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोउलाणं च। अनियायो वसहीयो सारइयाणं च मेहाणं // 172 // श्रावस्सगक्यनियमा कल्लं गच्छाम तो उ पायरियो। सपरिजणं सागारिश्र वाहिरिउं दिति अणुसिद्धिं // 173 // पव्वज सावत्रो वा दंसण भद्दो जहराणयं वसहिं / जोगंमि वट्टमाणे अमुगं वेलं