________________ [ श्रीमदार्गमसुधासिन्धुः। द्वादशमी विभागों ___ सुकयं श्राणति पिव लोगे काऊण सुकयकिइंकम्म(म्मा) / वडतिया थुईथो गुरुथुइगहणे कए तिन्नि // 1538 // निदामत्तो न सरइ अइयारं मा य घट्टणंऽणोऽन्नं / किइअकरणदोसा वा गोसाई तिन्नि उस्सग्गा // 31 // एत्थ पढमो चरिते दंसणसुद्धीए बीयत्रो होइ / सुयनाणस्स य ततियो नवरं चिंतंति तत्थ इमं // 1540 // तइए निसाइयारं चिंतइ चरमंमि किं तवं काहं ? / छम्मासा एगदिणाइहाणि जा पोरिसि नमो वा // 41 // अहमवि खामेमी (भे) तुम्भेहिं समं अहंच(पि) वंदामि / पायरियसंतियं नित्थारगा उ गुरुणो अ वयणाई // 1542 // - (भा०) चाउम्मासिय वरिसे आलोअण नियमसो हुदाय वा / गहणं अभिग्गहाण य पुव्वगहिए निवेएउ॥ 232 // चाउम्मासियवरिसे उस्सग्गो खित्तदेवयाए उ / पक्खिय सिजमुरीए करिति चडमासिए वेगे // 233 // देसिय राइय पक्खिय चउमासे य तहेव वरिसे य। एएसु हुँति नियया उस्सग्गा अनिश्रया सेसा // 1543 // साय सयं गोसऽद्धं तिन्नेव सया हवंति पक्खंमि / पंच व चाउम्मासे अट्ठसहस्सं च वारिसए // 44 // चत्तारि दो दुवालस वीसं चत्ता य हुँति उज्जोत्रा / देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे अ वरिसे य // 45 // पणवीसमद्धतेरस सिलोग पन्नत्तरिंच बोद्धव्वा / सयमेगं पणवीसं बे बावन्ना य वारिसिए // 46 // गमणागमण विहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे रायो / नावानइसंतारे इरियावहियापडिकमणं // 1547 // (भा०) भत्ते पाणे सयणासणे य अरिहंतसमणसिज्जासु / उच्चारे पासवणे पण वोसं हुति उस्सासा // 234 // नियालयाओ गमणं अन्नत्थ उ सुत्तपोरिसिनिमित्तं / होइ विहारो इवि पणवीसं हुति ऊसासा // 1 // (प्र०) . उद्देससमुद्दे से सत्तावीसं अणुन्नवणियाए। अट्ठव य ऊसासा पट्ठवण पडिक्कमणमाई // 1548 // जुज्जइ अकालपढियाइएसु दुछ अपडिच्छियाईसु। समणुन्नसमुद्दे से काउस्सगस्स करणं. तु // 46 // जं पुण उदिसमाणा अण