________________ 122] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / द्वादशमी विभाग उस्मासं न निर भइ आभिग्गहिरोवि किमु चिट्ठाए ? / सजमरणं निरोहे सुहुमुस्तासं तु जयणाए // 24 // कासखुवभिए मा हु सत्थमणिलोणिलस्स तिराहो / असमाही य निरोहे मा मसगाई तो हत्थो // 25 // वापनिमग्गुड्डोए जयणासदस्स नेव व निरोहो। उड्डोए वा हत्थो भमलीमुच्छासु श्र निवेसो // 26 // वीरियसजोगयाए संचारा सुहुमबायरा देहे / बाहिं रोमंचाई यो खेलाणिलाईया // 27 // अव(वा)लोअचलं चक्खू मणुब्ब तं दुक्करं थिरं काउं / स्वेहिं तयं खिप्पइ सभावो वा सयं चलइ // 28 // न कुणइ निमेसनत्तं तत्थुवोगे ण झाण झाइजा। एगनिसिं तु पवनो भायइ साहू अणिमिलच्छोवि // 21 // अगणीयो छिदिज व बोहियखोभाइ दीहडको वा / श्रागारेहिं अभग्गो उस्सग्गो एवमाईहिं // 1530 // ते पुण ससूरिए चिय पासवणुचारकालभूमीयो / पेहित्ता अत्थमिए ठंतुसग्गं सए ठाणे // 31 // जइ पुण निव्याघाए श्रावासं तो करिति सव्वेवि / सडाइकहणवाघाययाइ पच्छा गुरू ठति // 32 // सेसा उ जहासत्तिं पापुच्छित्ताण टंति सहाणे / सुत्तत्थसरणहेउं पायरिए ठियंमि देवसियं // 33 // जो हुज उ श्रममत्थो बालो वुडो गिलाण परितंतो। सो विकहाइविरहियो भाइजा जा गुरू ठति // 34 // जा देवसियं दुगुणं चिंतइ गुरू अहिंडयोऽचिठं / बहुवावारा इअरे एगगुणं ताव चिंतंति // 1535 // पव्वइयाण व चिट्ठ नाऊण गुरू बहु बहुविहीअं / कालेण तदुचिएणं पारेह थोचिट्ठोऽधि // 1 // (प्र०) नमुक्कार चवीसग किइकम्मालोणं पडिक्कमणं / किकम्म दुरालोइन दुप्पडिक्कते य उस्सग्गो // 1536 // एम चरित्तुस्सग्गो दंसणसुद्धीइ तइयत्रो होइ / सुयनाणस्स चउत्थो सिद्धाण शुई अकिकम्मं // 1537 // सबलोए अरिहंतचेइयाणं, करेमि काउसमां // 1 // वंदणवत्तिश्राए, प्रयण वत्तियाए, सकार-वत्तियाए, सम्माण-वत्तित्राए, बोहिलाभ-वत्तिश्राए,