________________ [मदार्गमसुभासिन्धुः / द्वादशमी विभाग अणिच्छ रत्तिं वसहा विगिचंति / विकिन्ने व समंताजं दिट्ट सटेयरे सुद्धा // 62 // सारीरंपि य दुवेहं माणुस तेरिच्छियं समासेणं / तेरिच्छं तत्थ तिहा जलथलखहजं चउद्धा उ॥ 63 // पंचिंदियाण दव्वे खेत्ते सट्ठिहत्य पुग्गलाइन्नं / तिकुरत्थ महंतेगा नगरे बाहिं तु गामस्स // 64 // काले तिपोरसिद्ध व भावे सुत्तं तु नंदिमाईयं / सोणिय मंसं चम्मं अट्ठी विय हुँति चत्तारि // 65 // अंतो बहिं च धोत्रं सट्ठीहत्थाउ पोरिसी तिन्नि / महकाए अहोरत्तं रद्धे बुड्ढे य सुद्धं तु // 66 // बहिधोयरद्धपक्के अंतो धोए उ अवयवा हुँति / महकाय बिरालाई अविभिन्ने केई इच्छति // 1367 // - (भा०) मूसाइ महाकायं मजाराई-हयाघयण केई / अविभिन्मे गिण्हे पढंति एगे जइऽपलोगो // 218 // अंतो बहिं च भिन्नं अंडगबिंदू तहा विश्राया य / रायपह बूढ सुद्धे परवयणे साणमादीणं // 1368 // (भा०) अंडगर प्रियकप्पे न य भूमि खणंति इहरहा तिन्नि / असज्झाइयपमाणं मच्छियपाओ जहि (न) बुड्डु // 219 // अजराउ तिन्नि पोरिसि जराउआणं जरे पडे तिन्नि / रायपह बिंदु पडिए कप्पड बूढे पुणऽन्नत्थ // 220 // जइ फुसइ तहिं तुडं अहवा लिच्छारिएण संचिक्खे / इहरा न होइ चोअग! वंतं वा परिणयं जम्हा // 221 // - माणुस्सयं चउद्धा अट्टि मुत्तूण सयमहोरत्तं / परिश्रावन्नविवन्ने सेसे तियसत्त अट्ठव // 1361 // रतुकडा उ इत्थी अट्ठ दिणा तेण सत्त सुक्कहिए। तिन्नि दिणाण परेणं अणोउंगं तं महारत्तं // 1370 // दंते दिट्टि विंगिवण सेसट्ठी बारसेव वासाई / झामिय बूढे सीधाण पाणरुद्दे य मायहरे॥ 1371 // (भा०) सीआणे जं दट्ट (दिट्ठ) तं तं मुसूणऽनाहनिहयाणि / आडंबरे य रुदे माइसु हिडिया पार // 222 // थावासियं च बूढं सेसे दिवामि मग्गण विवेगो / सारीरगाम वाडग .