________________ श्रीमदावश्यक-सूत्रम् / अध्ययनं 4 ]. [88 जहियं तु मासकप्पं वासावासं च संवसे साहू / गीयत्था पढम चिय तत्थ महाथंडिले पेहे // 1 ॥(प्र०) दिसा अवरदक्षिणा य अवरा य दक्षिणापुव्वा / अवरुत्तरा य पुव्वा उत्तरपुव्वुत्तरा चेव // 33 // पउरन्नपाण पढमा बीयाए भत्तपाण ण लहंति / तइयाए उवहीमाई नत्थि चउत्थीए सज्झाओ // 34 // पंचमियाए असंखडि छट्ठीए गणविभेयणं जाण / सत्तमिए गेलन्नं मरणं पुण अट्ठमी बिंति // 35 // पुव्वं दव्वालोयण पुब्धि गहणं च गंतकट्ठस्स / गच्छंमि एस कप्पो अनिमित्त होउवक्कमणं // 36 // सहसा कालगयंमी मुणिणा सुत्तत्थगहियसारेण / न विसाओ कायव्यो कायव्य विहीइ वोसिरणं // 37 // जं वेलं कालगओ निकारण कारणे भवे निरोहो / छेयण-बंधण-जग्गण-काइयमत्ते य हत्थउडे // 38 // अन्नाविट्ठसरीरे पंता वा देवया उ उहज्जा / काइयं डब्बहत्थेण मा उह बुज्झ गुज्झया ! // 36 // बित्तासेज्ज हसेज्ज व भीमं वा अट्टहास मुचेज्जा / अभीएणं तत्थ उ कायव्व विहीए वोसिरणं // 40 ॥दोन्नि य दिवड्खेते दब्भमया पुत्तला उ कायव्वा / समखेत्तंमि उ एको अवऽभीए ण कायवो // 41 // तिण्णेव उत्तराई पुमध्व रोहिणी विसाहा य / एए छ नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा // 42 // अस्मिणि कत्तिय मियसिर पुस्सो मह फग्गुहत्थ चिता य / अणुराह मूल साढा सवणधणिट्ठा य भद्दवया // 43 // तह रेबइत्ति एए पन्नरस हवंति तीसइमुहुत्ता। नक्खत्ता नायव्वा परिठ्ठवणविहीय कुसलेणं // 44 // सयभिसया भरणीओ अहो अस्सेस साइ जेट्ठा य / एए छ नक्खत्ता पनरसमुहुत्तसंजोगा॥ 45 // सुत्तस्थतदुभयविऊ पुरओ घेत्तूण पाणय कुसे य / गच्छइ य जइ उड्डाहो (सागारियं) परिहवेऊण आयमणं // 46 // थंडिलबाघाएणं अहवावि अणिच्छिए अणाभोगा / भमिऊण उवागच्छे तेणेव पहेण न नियत्ते // 47 // कुसमुट्ठी एगाए अवोच्छिण्णाइ एन्थ धाराए / संथारं संथरेजा सव्वत्थ समो उ कायवो // 48 // विसमा जह होज्ज तणा उवरि मज्मे व हेदुओ वावि / मरणं गेलण्णं वा तिण्हंपि उ निदिसे तत्थ / / 46 // उवरिं आयरियाणं मज्झे वसहाण हेट्टि भिक्खूणं / तिण्हंपि रक्खणट्ठा सव्वत्थ समा उ कायया // 50 // जत्थ य नत्थि तणाई चुण्णेहिं तत्थ केसरहिं वा / कायव्वोऽत्थ ककारो हेट्ट तकारं च बंधेज्जा // 1 // जाए दिसाए गामो तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं / उट्ट तरक्खणट्ठा एस विही से समासेणं // 52 // चिण्हट्टा उवगरणं दोसा उ भवे अचिंधकरणंमि / मिच्छत सो व राया व कुणइ गामाण वहकरणं // 53 // वसहि निवेसण साही गाममझे य गामदारे य / अंतरउज्जाणंतर निसीहिया उद्विए वोच्छं / 54 // वसहिनिवेसणसाही गामद्धं चेव गाम मोत्तव्यो / मंडलकंडुद्देसे निसीहिआ चेव रज्जंतु // 55 //