________________ कल्पसूत्र मूळ // 52 // संपत्ते बारसाहे दिवसे, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं नायए खत्तिए य आमंतेति, आमन्तित्ता तओ पच्छा व्हाया कयवलिकम्मा / कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं, पवराई वत्थाइं / परिहिया अप्पमहग्या-भरणालंकिय-सरीरा भोयणवेलाए भोयणमण्डवसि सुहासण-वरगया तेणं मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं // 52 //