________________ आसाएमाणा विसाएमाणा परि जेमाणा परिभाएमाणा एवं वा / विहरन्ति // सू.१०४॥ जिमिय भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभुया तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरिजणं नायए खत्तिए य विउलेणं पुप्प-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं / सक्कारेंति सम्माणेति सक्कारित्ता सम्माणित्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-1 सयण-संबन्धि-परिजणस्स नायाण य खत्तियाण य पुरओ एवं वयासी / Kासू.१०५॥