________________ [3 श्रो भहानिशीयसूत्र :: अध्ययन 1 (3) st महानिशीथसूत्र अध्ययन 1] ए // 7 // जे या वाऽऽयहियं कुज्जा, कत्थई पारलो- . इथं / माथाडंभेण तस्सावी सयमवी(म्यानभानए आयाम (सय)मेव अत्ताणं, निउणं जाणे जहदिव्यं / आया चेव दुय्यतिज्ने, धम्ममविय (धम्मं वि) अत्तसक्खियं // 9 // जं जस्सागुमयं हिए सो तं ठावेह सुंदरपएसु। सदली नियतणए तारिस कुरेवि मन विसिरठे // 10 // अत्तत्तीयाऽसमि चा सथल-पायजागियो कप्पयंत प्यऽणय, दुरठं वइकायचेरठं मणसि य खलु संसंजुयं ते चरंते / निहोस तंच सिठे वगयकलुसे पक्सवायं विमुच्चा, विखंततपावं कलुसियहिथयं दोसजालेहिं पठं // 1 // परमत्थ तत्तसिद्धं सब्भूययपसाहग। तभणियाणुहठाणे जे आया रंजए सकं // 12 // तेसूत्तमं भवे धम्म, उत्तमा तवसंपया / उत्तम सील. चारितं, उत्तमा य गती भवे // 13 // अस्थेगे गोथमा! पाजेएरिसमनिकोडिंगाए / ससल्ले चरतीक म्मं, आयहियं नावबुज्झई // 14 // ससल्लो जावि करगं, घोरं वीरं तवं चरे। दिवं वास सहस्संपि, ततोऽवी तं तस्स निफलं // 15 // सल्लंपि भन्नई पावं, जं नालोइयनिदियं / न गरहियं न पछित्तं, कर्य जं जहय भाणियं // 16 // मायाडंभमकत्ताव,म. हापरछन्नपावया / अयजमणायारं च, सल्लं कम्मट्ठसंगहो // 17 // असंजमं अहम्मच, निसीलऽबत- . ताविय / सकलुसत्तमसुद्धी य, सुकयनासो तवय // 10 // दुग्गगमणगुत्तारं, करवे सारीरमाणसे। अ. बोरिछन्ने य संसारे, विगोवणया महंतिया॥१९॥ केसिं विरूवरूवतं, दारिदया९) दोहगाया। हाहाभूयसवेयणथा, परिभूयंघजीवियं // 20 // निधि ण नित्तिस करतं, निय निस्किवयाविय / निल्ल