________________ - -- महानिशीयसूत्रं धरनं 03 3 भिसटभावेण जाचरे। ताउ तस्स तयं पावं, वइटए उण हायए। // 23 // भयवं! कि तंबड्ढेज्जा, जं पमादेण कत्थई / आगयं! पुणो आउत्तस्स, तेत्तियं किं न गायए?॥२४॥ गोयमा ! जह पमाएणं, निप्छतो अहिडंकिंए। आउत्तम्स जहा पछा विसं, / वटे तह चेव पावगं // 205 // भयवं! जे विदियपरमत्य, सबपच्छितजाणगे / ते कि परेसिं साहंति, नियमकजं जहरियो // 206 // गोथमा ! मंततंतेहि दियह ओ कोडिमुठवे / सेवि दठे / विणिरिचरठे, धारियल्ले हि भल्लिए // 207 // एवं सीलज्जले साह, पच्छितं न ददया। अन्ने मिनिउणं (लदहठं) सासो). हे,ससीसं व बहावो जहति // 20 // ". ॥महानिसीयसुयरखं धस्स कम्मबिवागवाग. रणं नाम बीयमन्मथणं // 2 // एसि तु होण्हं अन्झयणा. विहीपुजगणं सब्बसामन्नं वाथगंति // 2032 / / . --अभी परं चउम्कन्नं, सुमहत्थाइसयं परं / आणाए सहहेयवं, सुसत्थं जं जहाठियं // 1 // जे उघाडं परवेज्जा, वेज्जा। वसुजोगस्स उ / वाएज्ज अभयारीवा, अविहीए अणुहि उंपि.वा // 2 // उम्मायं व लभेज्जा रोगायंकं च पारणे हीहं।। भंसेज्ज संजमामो मरणंते वा गधावि आराहे // 3 // एत्थंतु विहीपुब्वं, पठमज्झयणे पसरियं / बीए चेव विही एवं वार' सेसाणिमं निहिं // 4 // बीयज्झयणेविले पंच नरहेसा तर्हि भवे / तइएसोलस उद्देसा, अहट तत्व रबिले ॥५॥जेत. उए तं चउत्थडवि, पंचमंमि धारिले / छठे दो सत्तमे ति. न्नि, अइग्मे आयंबिले दस // 6 // अणिक्वित्तभत्तपाणेण,सं. घट्टेणं इमं महा / निसीहवरं सुथक्वंध, वोठव्वंच आतगपाणगणंति // 7 // गंभीरस्स महामणो उ, संजुयस्स तवो.