________________ (26) श्री आगभ सुधा सिन्धु दशमौं विभाग .26 [&Amp :: PAADHARY uRe मह निरठे खणमेगं तु, बीय नो परिवसे स्वर्ग। भह बीपि विरतेजा. ता जुजउऽयं तु गोयमा! ॥१९॥रारोणं नो पोसेणे मरेणं न केगई। न भावि पुटबवरेणं, खेड्डा. नो कामकारओ // 130 // कंध कस्सइ देहिस्स, भारहेई खणं तणू। वियलिंदी भूण पाणे वा जलंतरिणं नावी निविसे // 31 // नविते न जहा मेस, पुनवीरवा महीना विधी मम खेम पाट वा, सजोमि एयरसाहं॥३२॥पुवकर. पावकम्मरस विरसे भुजतो फले। तिरिउड़हदिसाणुदिर, कुथु हिंडे राय से // 13 // चरते व महावाए सारी दुम्स.. माणसं / कुंथुवि दृसहं जले() रोहटन्झागवइटी ना सल्लमारभेनाण, मणजोगन्मयरेण या समयावलियमुहसेवा सहम्सा तस विवागय // 1354 कह सहिहं बहुभवग्गहणे, दुहमणुसमयमहगिणसं / घोरपयंडव महारोह ?, हाहा. sबंदपरायणा // 36 // नारयतिरिछोणीसु, अज्झात्ता गासरणोविय। एगागी ससरीरेणं, असहाया कडुविरसंघगं 137 // असिवणवेधरणीजंते, करवने कूडसामलि।कुंभीयवायसा सीह,एमादी नारए दुहे ॥३८॥णत्यकणवहबंधेय, ' पेल्लुक्कतविकतणं / सगडाकइटणभरुवहां जमला यतणा Bहा 139 // स्वरखुरचमदणसत्थरीरयो भगंजणमाइए परयत्वाऽवसणितिसे टकरवे तेरिच्छेतहा 13000 कंधपथरिसमणयंपि, टुक्रव नहियासिउं तरे / ता तं महदुम्स. संप्रदर, कह नियरिहि सुदारुणं॥१॥ नारयतैरिच्छ. दुकस्वार, कुंथूजणियाउ अंतरं। मंदरगिरिमगतगुणियास, परमाणुस्सावि नो घडे // 42 // चिरयाले संमुहं पाणी, कखंती आसाए निच्चो / भने दुस्खमईयपि,सरंतोऽचतक्रियो // 1830 बटुक्रव संकडइत्थं, आक्या. लक्ख परिगए। संसारे परिनसे याणी, अयंडे मन्जिला // 11 // पत्थापत्धं अथागते, कज्जाकजहियाहिये / स.