________________ 200] , श्री भागमसुधासिन्धुः:: दशमो विभाग: निरिधणी // 5 // इणमो दुल्लभलभिसामन्नं नाण.. सणं / धारितं वा निराहेत्ता, अणालीक्यानिदियागरहिथअकयपत्रिछत्ती, वावज्जती जई अहं॥४॥ ता नियंभगुत्तरे, घोरे संसारसागरे। निवुड्डो भवकोडीहिंसमुत्तरंतो गवा पुणो // 5 // ताजा जरा ण पीडेड,वाही जाव न केई मे। जावित्थिान हायंति, ताव धम्मे चरेतुऽहं // 46 // नहहमारेण पावाइं. निंदिउं गरहिउ चिर। पायच्छित चरिता निक्कलंकी भवामि ॥७॥निअकलुसनिम्कलंकाणं सुखभावाण जीयमा!। तभी नलं जयं गहियं सुरमवि परिवलितुणं ॥८॥ए. वमालीय दाउं, पायरिधत्तं चरितुण / कलुसकम्ममलमुक्क,जाणो सिन्झिज्ज तरूणं 10१॥तावए - देवलीगंमि निन्धुज्जीए सयंपहे / देवदुंदुहिनिग्योसे, अच्छरासथसंकुले // 10 // तजओ चया इहागंतुं सुकुलुप्पर्ति लभेन्चयां / निचिन्न कामभोगा यनवं काउं मया पुणो // 11 // अणुत्तरनिमाणेसुं निवासिऊगहमागथा। हवंतिध. म्मतित्धयरा सयल तेलोक्कबंधवा // 52 // एस गोयमा विन्नेये.सुपसत्थे चउत्प ए)भावालोयणं नाम. अक्षयसिवसोकादायगो ॥५३॥ति बेमि.॥ से मयवं! एरिसं पप्य, विसोहिं उत्तम वरं / जे पमाथा पुणी असई, कत्थर चुम्के खलिज्ज वा ॥५०॥नम्स कि भरे सोहिययं सुबिसुद्धं येवं लक्विए। उपा णी समुल्लिकले ? संसथमेयं वियागरे // 55 // गायमा! निंदिउं गर हिउँ सुरं, पायच्छितं चरितुणं / नियवारियनत्पमिवाएण खंपणं जो न रखए / // 56 // सो सुरहिगंधुधि ण्णगंधोदयविमल निम्मल पविते / मन्जिभ वीरसमुद्दे,भ... सुईगड्डाए जड़ पड३ // 57 // एता पुण तस्स सामग्गी,