________________ 172] - श्री आगमसुधासिन्धुः: शिमो विभाग: से भय / कयरे णं से विहिीसीलोगो ? जीथमा! इमे णं से विहीसिलीगो, तंजहा चिइवंदगं पडिक्कमणं, जीवाइ तत्त स भावं। स. मिइदियदमगुत्ती, कसायनि गहणमुबओगं॥७॥ नाऊ. ण सो पीसत्यो सामाधारिं कियाकलावंच। आलोइय नीसल्लो आगाभा परमसंरिगो॥॥ जम्मजरमरणभीओ, चउगइसंसारकम्मदहणछा। पइदियहं हियएणं एय अणवरयं झायंती ॥९॥जरमरणमयणपउरे रोग. किले साइबहविहतरंगे / कम्म कसायागाहगहिरभवजलहिमसंमि // 10 // भमिहामि भट सम्मत्तनाणचारि. तलवरपोओ। कालं अणोरपारं तं दुम्वाणमल. भंतो // 13 // ता कश्या सी थिहो जत्था सन्तुमितसमपक्खो / नीसंगो विहरिस्सं सुहसाणनिरंतरी पुणोऽभ. व // 12 // एवं चिरचिंतियभिमुहमणोरहीरु संपतिहरिसुल्लसिओ। भत्तिभरनिभरोणयरोमंचकंचुयपुलइथंगो . // 13 // सीलंगसहस्सारसह धरणे समोध्यकधी। छत्तीसायाक्कंठनिद्वविधासेसमिछत्ती॥१॥ पडिज्जे पबज्ज विमुक्कमयमाणमरणरामरिसो। निम्ममनिरहंकारी विहिणेवं गोयमा! विहरे // 15 // विहग श्यापडि. बद्धी उजुती नाणसणचरिते / नीसंगो घोरपरिसहो. वसग्ग्राइं पजिणंतो // 16 // उग अभिगह पडिमाइ रागदोसेहि हरतरमुस्को / कवटज्माणविवन्जिओ य वि. गहासु से असतो॥१७॥ जो चंदोण बाई आलिंपवा. सिणा व जो नछे। संधुणइ जीभ निंदई समभावो हु. ज्ज दुण्हपि // 18 // एवं अणिरहियबलविरिपुरिसक्कारपरक्क. मी समामण) तणमणि लिकंचणी चेन परिचत्तकल. तपुत्त सुहिसयण मेतबंधव धणधन्न सुवन्नहिरण्य मणि *