________________ महानिशीधसूत्रं : शयनं ‘वाससहरसंपि जई काऊगं संजमं सुविउलंपि। अंते किलि भावी नविज्झ कंडरीब // 414 // अध्येयवि कालेणं केर.जहाँगहियसीलसामन्ना / साहंति निययकज्जं पडरियमहारिसिव्व जहा / / 415 // य संसामि सुहं जाइजरामरण दुकखगहियस्म / जी. वस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्यो उवाएभो // 4 // सम्वपयारेहि सव्वहा सव्व भावभावंतहिणं गोयमोति मि // महानिसीह-सुथम्बंधस्स छठमझयणं गीयत्ववनहारं नाम समन्तं // 6 // ॥अप सप्तमध्ययनामिका एगंतनिर्जराख्या प्रयमा धूला // भयवं। ता एपनाएणं, जे भणियं आसि मे तुम जहा / परिवाडीए (तच्छ) किन अम्लसि, पायचितं तत्य मन्त्री // 1 // इनइ गोयम! पच्छितं, जब तुमंतमालंबसि। नवरं धम्म विधारी ते, की सुविधारिओ फुडी // 2 // ण होइ तस्स परिछतं. पुणरवि पुछज्ज जोयमा? संदेहं जाव देहत्य, मित्तं तार नियं३मिलेयावि अभिभूए, तित्यथरस्स विभासियं। मां लंबित वरीयं, वाएत्ताणं परिसंति ॥४॥(घोरतमतिमिरवलं. धयारे पायालं), णवरं सुस्थिारि काउं, तित्थायरा स. यमेव य। भणति तं जहा चेन, गोधमा / समणुहिंग्ए॥ अन्धेगे गोथमा! पाणी, जे पन्जिय जहा तहा। अवि. हीए तह घरे धम्मं, जहसंसारा ण सुचाए // 6 //