________________ श्री आगमसुदासिन्धुः:: दशमो विभागः. जह कीला गो मरिजिया // 144 // परमत्यो गतं अमर्य संविसं तं हलाहलं। ण तेण अयरामरी होज्जा,भरवणा निहणं ए१९५॥ अगीयत्यमुसीलेहि, संगतिविहेण रजए। मोबस्वमसास्सिमे विग्ये, पहंमी तेणगे जहा // 16 // पज्ज. लियं हृयवहं इर्छ, गीसको तत्य परिसिउं। अत्तापि डहिज्जासिनी कुसीले समल्लिए // 147 // वासलकवंपि सूलीए, संभिन्नी अरिध्या सुटं। अगीयत्येण समएमकं, खणदपि न संवसे // 148 // विणावि तंतमंतेहि, घोररिस्ठी विसं अहिं / उसंतंपि समलतलीय, णागीय कुसीलाहमं // 149 // विसं खाएज्ज हालाहलं, तं किर मारेर तकस्था ण करेगीयत्यसंसग्गिं, विठवेलखंपि ज तहि // 15 // सीह वग्धं पिसायं वा घोररूवभयंकरं। भोगिल| माणपि लीएज्जा, ण कुसीलमगीयत्वं तहा॥१२॥ सत्तज|म्मतरं सत्, अवि मन्निज्जा सहोथरं / वयनिथमं जोवि. राहेज्जा, जणयं पिक तयं खिं॥१५२ वरं पवितो जलि. / यं हृयासणं,न यावि नियमं सुहम विराहियं / बरं हि मध्य | सुविस्पुकम्मणो न थाविनियम भंतूण जीलियं // 13 // | जगीयत्यत्तदोसण, गोयमा / ईसरेण उजे पत्तं तं निसामेत्ता, लह गीयत्यो मुणी भये 154 // से भयवं। णो रियाणेऽहं, ईसशे कोनि मणिवशे। नि वा अगीय पदोसेणं, पत्तं तेण ' कहे. हि गो // 155 // चाउमीसिगाए अन्माए, एत्य भरहमि गोयमा।। | पटमे तित्थकरे जड्या, विहीवेण निम्बुडे // 156 // तइया निना णमहिमाए, कंतर मुरासुरे। निवर्थते उम्पयंते व ढुंप. च्वंतवासि // 157 // अहो अच्छरथ अज्ज, मचलीथमि पेधिमो / ण इंदजाल सुमिणं मावि, दिलं कत्थई पुणी 150 // एवं नीहापोहाए, पुब्धि जाइं सरितु सो / मोहं गं। मणमेक्वं, मारुयासासिभो पुणो // 259 // धरयर, रस्स कंपतो, निदि गरहिउँ चिरं। अत्तानं गोथमा'