________________ 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎 ( श्री भागमसिन्धु:: दशमो विभागः णं भवइ अबंधगी // 113 / / सावधम्मं जहुतंजओ, पालि परदारगं चए / जावज्जीवंतिविहेणं, तमाभावेण सा गई // 14 // व नियमविहारस,परद्वारगमण(ग). रस थ। अणियत्तस्स भवे बंध, णिदिनी महाफलं // 115 // सुधेवाणपि निविति, जो मणसावि विराहए।सो मी दुरगइ गरछे, मेघमाला जहऽनिजथा // 116 // मेधमालज्जिय नाहं, जागिसो भुवणबंधव! मणसावि अणु. निव्वति, जाखंडिय दुग्गइं गया // 117 // वासुपुज्जम्स लि. त्यमि, भोला कालगरवी / मेघमाला जिया आसि, गो. थमा। मणब्बला // 118 // सा-नियमोगासे परवं दाउं काउंभिक्वा य निगया / अन्नओ एस्थिणी सारमंदिरो. वरि संठिया // 119 // आसन्न मंदिरं अन्न, लधित्ता गंतुमिरछगा। मणसाऽभिनंदेनं जा, ताव पज्जलिथा दुवे / / 120 // नियमभगं तयं तुडम, नीए तत्थ ण किंदिय। तं. नियमभंगदोसेणं, डज्झिना पदमियं गथा // 123 // एवं ना. उं सुद्धमंपि, नियमं मा विराहिह / जच्छिया अयं सो. कसं, अणतं च अगोरम // 222 // तवसंजमे वएवें च, नि| यमी दंडनायगो / तमेव खंडमायरस, ग वएणोव संजमे // 123 // भाजम्मेणं तुजं पावं, बंधेजा मरबंधगो / क्य। भंग काउमणरस, तं घेवाणं मुणे // 124 // सयसम्म सलदीए, जीवसामिनु निकषमे / वयं नियमवंडतो,जं सो तं पुन्नमज्जिणे // 12 // परित्ता थनिवित्ता थ, गारथी संजमे तवे। जमगुखिया तथं लाभ, जान दिक्खा नगि. पिहथा॥१६॥ साहसाणीवग्गणं, विन्नयनमिह गोथमा।। जेसिं मोत्तूण ऊसासं, नीसासं नाणुजाणियं॥१२७॥ तमवि जयणाए अणुन्नायं, विजयणाए ण सम्वहा / अजयणाउ ऊससंतस्स. की धम्मो कभी तवो // 12 // भयव! | जावदयं दिखें, तावश्यं कहणुयालिया। जे भने अबीय 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎