________________ श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [ 3] भावोत्वसमो अलभंतो सोचि अयुम भवे // 34 // गालिय दोसा भाऊगा जस्य हु सो वदिओ सुशेयचो / चिप्पियबालस्मेव तुच. प्पित्तु विवाहिता जन्या / / 262 / / मतेपुवातवेदो अडवावी भोस - हीहि नम भने / इसिमतदेवसन्ता इसिणा देवण वा सत्ता ||343 // वद्धियमादि उरिमा उच्च पसा हवति भयोग - ज्जा / नोट पोडमेति ण दिवस भर गाव पोडसेवि तो दिक्ये // 31 // आदिल्लेश्य दसस्स वि पचावतो डु पावए मूलं / जो पुण पव्यावहा बदलेवं तस्य चउग्ररुमा 345 // जे पुण छ तू,रेमा. पव्चावितस्स चउगुरु तेसं। बदमाणेऽनि य गुरूगा कि वदते सो इमं सुणसु // 346 // धीपुरिसा जह उदयं निति सागोववाणियमेडिं। एवमपुमंचि उदयं धरेऊन जोदे को तहि दा सो ? 1327 / अहवा ततिए दोसो जाति इयरेस किं न सो भवति / एवं तु जोन्म दिया सवेदगाणं ण वा तित्यं // 34 // भण्णति धारिसा स्थल पत्तेयं दोसराहे यहाणेसु / णिव संती ३यरी पुण कहि धुभति दोसु बी दोसा / / 349 // संवासफाट्टिी दोसा डू तम्स उभय संघासे / अपत्यं बगदिहतो जह रायमतो अ. वारंतो // 350 / / एतबदिदहती अडवा जह वच्छो मातरं दद। अभिलसती मायाचि य वच्छ दहण पण्ड्यात / / 351 / / अंबं वा वज्जतं टट्टुं अहिलासो होति अण्णस्य / सागारियादि दई एव Uपुंस भवे दोसा / / 352 // तम्हा हु दिक्विज्जा एवं णाऊणमेत दो मगण / बिति यपदै दिक्सिज्जा इमेहिं अह कारणे ितु // 353 // अ. सिवे भो मोर्याए रायद हे भए य भागाठे। गैलण्ण उत्तिम है गाणे तह टमण चरिते // 35: / / रायड भएमु ताणह णिवस्म चैत्र गमापदहा / वेन्जो च सय तस्य न प्पिस्सति वा गिलाणस्य / / 355 परिचरगम्मऽसतीए एगानी उत्तिमहडिजण्णो। अहवा वी भ(कु सहाए बेयावच्चहता दिवचे // 356 / / गुरुजीच अपणो वा पाणादी गिण्डमाण तपिहिती। अचरणदेसा णिते न. प्पे ओमामिवेहि वा // 357 // एतेहि कारणेहिं आगाठेहिं तु जो तु / णिक्लामे / पंडादी सोलस कयकज्ज विगिंचणट्टाए / / 358 // FFFFFFFFFFFFFE