________________ ARRRRRRRRRRR [82) श्री आग म मुथा मिथुः 0 नवमो विभागः ण कहति कोहए वि य उवेडं / परपक्य सपक्य वा कोहीते सो तमानज्जे // 32 // सो समणमूविहिपोहें पवियारं कत्थती अ. लभमाणी / तो सेवितुं पवनी गिहिणो तह अण्णतिथी य॥३२५॥ अजसो य ओकत्ती या तं मूलाग तहें पच्यणस्म / तेसिपि होति संका सबै एतारिसा मण्णे // 326! पोरमसेवी एतारिसा त्री एतारिसो चरनिसहो। सो एसो वि अण्णी अस्संबडंधीउमादीहि / / 327 / / जम्हा एते दो-सा तम्हा व दिक्वणिज्जो पं. डोर। एसौ पंडो ऽभिहिओ एत्तो किलिवं पवक्यामि / / 328 // . किलिवरस गोण्णा णाम तदोभप्याओ कलिज्जए जरस / सागारियं / से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा / / 329 / / सो डु णिलडभमाजो कम्मुदएणं तु जायए तइओ। तम्मिचि सौ चैव गमो पच्छित्तं चैव जह पडै / / 330 // उदएण वतियस्सा सविगारंजा " ठौती संपत्ती / तच्चोणय असंडित दिदहती थिमी होति // 33 // णावारूटों तच्चण्णितो तु दटई असंवुडमा / ओवतिओ पुरिसे. झाडत्ति रिज्जमाणोधि / / 332 // एसोवि वातिगो हु अलभंतो सेवितु अणायारं / कालंतरेण सोऽवि ड णपुंसगत्तेण प. रिणति // 333 // दुविहो य डोति कुंभी जातीवंभी य वेदकुंभी य। जातीकुंभी वाहिओ टु सो भइय दिवयाए / / 33 / / डोइ पुण वेदकुंभी असेवओ सुज्जते सि सागरियं / सोऽवि य विरुद्धवत्थी गपुंसगत्ताए परिणति // 335 / / वे उक्कड़ता ईसालुगौ हु मौवज्जमाण दहणं / ण चएती धार णिसभमाणो भव ततिओं ||336 / / सउणी उक्कडवेओ चड उच्च भिक्ख सेवए जो उ! सोऽवि य णिरुद्धवत्थी णपुंसगत्ताए पोरणमौत / / 337 // तक्कमन्से. वि जो स्खलु सैविय तं चैव लिडति सावं। सोऽविय अपोडेयर तो णपुंसगत्ताए पोरणमात / / 33 / / एगे पळसे उदओ एगै पक्सम्मि जस्स अप्यो उ / सो पत्रसवियओ ड सोऽवि णिकद्रो भवे अपुमं // 339 / / सागरियस्स गंधं जिंति सोगधिओ भये स सलु / कालंतरेण सोऽवि अलभंतो परिणमे अपुमं // 30 // त्रिगगहअणुप्पवेसिय अच्छति सागारियोज्य आस्सित्ती / ण य मे RESERTERRss