________________ गगाई तदणुभाव // R A भाषण मण्याणं // 16 // ल श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [73 छोचह कप्पाइयाण कप्यागं पण्णचण परचणता णयमे पुचगेम णिहिटहा | सोतार पुण आसज्ज होज्ज कप्यि भरव णवर्माम्म / धारण गहण समत्थे लोहे में असमत्थे इदं तु ॥१६५कप्याण वक्वाणं पुबगते वोणतं समत्तं तु / इह धोवर्गति काउंण हु बहुभाणो ण कायव्यो / / 166 / / बच्चे वेत्ते काले उग्गह संघयण धारण गुरुणं! सैघि बहुर्माखाय जं एगपदे पदं अस्थि // 16 // दुस्समअणुभावेणं हाणी विरियम मोन्सहीणं तु / दुलभाणि य दवाई जइ जीगाइं तदणुभावे // 16 // घेताणि य (पाहायंती विहारजोगाई तणुभावेणं। दा। दुभिक्चपउरकालो ते दि उग्गहर्णाम्म संघयणं धारणा य परिहाति / / य सीमारियाणं सती वतुं व सोतुं वा // 170 // य सति बछ गुरुयो जे वतारी य हुंति अस्थस्सा लेवि ण सञ्चस्य लडं पसादमुमुदा भवंती तु।दानं, // 17 // इय णातुं परिहाणिज एगपदै वि एगमत्थपदं / बहु मैतळ पिडु किं पुण संतेसुऽणगेन / / 172 // तो 7 पमाएयण य भन्ती तू तर्हि ण कायव्वा / सुदृढतरं उज्जोगो कायचो तम्मि वित्तव्ये॥१३॥ सो पुण पंच निकप्पो कप्यो इह वण्णिो समासेणं / वित्धरती पुचगती तस्स इमे होति भेदा तु ॥१४॥छब्बिह सीवहे या दविह धीतिविहे य बायाले // जस्स तुर्मात्य विभागो सुव्वत जलंधकारी // 175 // विभयण वि'भागो भण्णात अहेरिसो छविहो य सत्तविहो। णामादिविभागोवा जस्सेसोग विदितो होति / / 176 // सुचत सुट्हु वन्तं तस्स निबुइडस्स वा जलमगाहे। होती सचचसुयस्स वि जहंधकारी मणुस्सस्स // 177 // अहवा जलंधकारी मेहोरायम्मि होति मागणम्मि। अहवा जलंधकारीजस्थादिच्चो / दीति तू // 17 // एवं तु अंधकारी कप्यपकप्यं पडुच्च तस्स भचे। अहवा सो चैव जलो भवद य से अंधकारं नु।।१७९॥ छबिह कप्परिमणमौ णिवस्वो छव्यिहो मुणेयम्बो। णाम हबणा दबिए येते काले तहेव भावे य // 10 // जेण परिहिएणं दव्येणं कप्प हौति णाऽकप्यो / तं दव्वमेव कप्पो कारणकज्जोवथारातो॥१८॥ सो तिविही बोधच्चो जीवमजीचे य मीसतो चैव। एतसिं तु विभागं वोच्छामि अहागुपुचीए / / 2 // निविहो य जीवकप्यो टुपयचउप्पय तहेव अप 10 聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽聽