________________ 822 श्री निशीथ सूत्र उद्देशक 11] भुभइ संझुंजते ना साइप्नइ ॥सू०३१॥ संथनिए विइविधासमावस्नेय ॥सू०३२॥ असंथपिए निविशिधासमाजन्नणं // 33 // असं विइमिछासमावन्ने] (अह पुष एवं आणेना-अणुगए सूरिए अत्यमिए वा,से अंच मुहे जंच पाणिसि जंच पडिगहे तं विविधिय विसोहिय ते परिटुनेमाणे नाइक्कमइ,जो तं झुंजइ भुजत वा-साइज) 325 ॥सू०३०॥ जे भिक्खूरामी वा विद्याले वा सपाणं सभीषणं उगालं गलित्ता पोलिइ पधौगिलंतं वा साइजइ 356 ॥सू०३५॥ जे भिक्खू मिलाणं सोचा न गवस३ नगवेसे वासाइज 036 जे भिक्यू उम्मणे पडिपटं वा गर७३ छत वा साइसई ॥सू०३७॥ जे भिक्खू गिलाणवेधानधे भुट्टियस्स सरण ला. भण असंयरमाणरस जे तम्स न पडितप्प नपडितप्येतं वा सारजासू०३८॥जे भिक्खू गिलाणवेयावधे अभुट्टियं शिलाणपाभोगे दृव्वजाए अलभमाणे - न पडिथाइक्रवइ नपडिमाइक्रवतं वा साजर 512 ॥सू०३९॥ जे भिक्यू पढमपाउसंसि गामाणुगाम इज दूखंत वा माइज्जइ // 40 // जे मिक्तू वासाचास पचीसविधमि इनमंतं वा साइम "01 // जे भिक्खू अपजोसवणाए पजीसवेह पोसवेत ना साइज // 42 // जे मिकरयू पञ्चीसवपाए न पोसवै नपओसवंतं वा साइज ॥३जे भिक्षु पोसवणा गालोमाइंपि वालाई उनाइणावेइ उवाइणावेतं वा साइप्रसूभिक्यू पोसत्रणाए इत्तिरियपि भाहारं आहार आहारेत वा सारज्जइ // 02 // जे भिक्छु भन्नउत्यियं वा गारस्थिय वा पोसवेई पोसवेतं वा साइनाइ 60 "०४ाजे भि खू परमसमोसरयुसफ्ताई पिराई पडिआहेई पहिशाहत वा साबइe' तं पवमायो आवजय पाउस्माभियं परिहारहाणं अणु घाइये // 9047 // इसमोलो / ॥अथ एकादशाशकः।। जे भिक्खू भय-मामागिवा कसपामाणिवा तबयामाणिवा तयपायाही वा रुप्यपाथाणिवा सुवण्यापाथापि वा जायकवपायाणिना मणिपाथाणि वा कारभागवा कणगयायाणि वा दन्तपायाणि ना सिंगपाथाणि वा चम्मपाथाणिवा चेलमायाणि ना अकयाथाणिवा संवपाथाणिवा वइत्याथाणिवाकोकोवा सहज "स्०१॥ से भिक्षू अथपायाणि का आन बहरयाधाणि वा घरे धरत वा साइस