________________ श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [213] धीरो // पासत्योसण्णकुसीलहाणपरिरक्यतो दुपको वि / सो होति कुलत्थेरो कुलधेरगुणेहिं उक्नेदो // 2650 / / चरणकरणे समग्गो जो जस्थ जदा गणप्पडाणोतु। सो होति गणशे गणचरिथरियाणओ धारो // 65 // पाय-यो. सण्णकुसीलहाणपरिरक्यतो टुपक्से वि।सो होति गणत्यरोगमधेरगुणेहिं उपतो // 2652 // चरणकरणे समग्गो जो जत्य जदा जुगप्पहाणोतु / सो होति संघधेरो मीतघरसमो पुरिमसीहो / 2653 / / एसो तु मलसंघो आपुच्छण-गमणकरणकज्जेसु / हित. सुहणिसेसकडी कुलगणसंघऽप्यणो चेव // 2654 // दसणणाणचरिते जा पुनपसवायरणया य / एसो तु मूलसंघो तिषिहा धेरा करणजुत्ता // 2655 // पुव्वं चि परवेज्जा आयारादीसु ग्णित्चरिते। तं सम्ममायरंतो हवति तु संघो तहा धेरो॥ 2656 / / जो सोहीगचरित्तो अण्णस्सऽसतीत पुबभणितो तु / कुलधेरादि डविज्जति तम्सुलदेसो इमो होति // 2657 // होज्ज असणसंपत्तो सरीरमार्थकता असहओवा / चरणकरणे असत्तो सुद्धं मां परूबेन्जा // 265 / / रमणं वाजीमादीसूलजरादी होइ आतंको / धितिसारीरबलेणं हीणो असह मुणेयव्यो // 2657 // एतेहिं कारणेहि अकय्पपडिसेवणं क. रंतो नि / मुद्धं मग पलने अप्पाण हिया अतो पत्तो / PREM कप्यपणयस्स भेदा सोच्चा गच्चा तहेव घेतणं / च. रणकरणे विसुद्ध आचरण पलनणं कुगह / / 2661 / आरियसगासातो सोच्चा जच्चा य घेत्तुमन्येणं / हिलते बनत्य तुं आयरणपलनणा कुज्जा // 2662 / / कम्पपणगरस भेदो पविओ मोम्ममाहणडाए / जं चरिऊण सुविहिता कति दुरवस्मयं धारा // 2663 // पंचविह-सुत्तकप्पाण विभासा वित्यरं पमोत्तूणं / गहिता सीसहियदहा अनोछित्तदहया येव / / 2664 // गाहगण फ्यवस्सिन्सबाई चहत्तराई 2574 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎