________________ श्री पञ्चकल्प भाष्यम् [20971 अणुनासो कारणं जाव // 25.1 // एसयुवासणकप्पो अहणा अणुपालणाए कप तु / सव समुदिदट वोच्छामि अहं समासे णं // 2586 // मोहतिगिच्छाए गते.गदहे येतादि अहव कालगते / आरिए तंमि गणे पीलादीरकपणहाए ॥२५८०॥को उ गणी हरणिज्जो भण्णति जति तस्स कोर्ति सीसो तु / सुत्तत्यतदुभएहि जिम्माओ सो टवेयम्बो ॥२५८०असतीय नस्यता हे ठावेयव्वा कमेणिमेनं तु / पव्वज्ज कुन्ते गाणे ने सुहदुविम सुतसीसे ॥५गुरुगत गुनगंतवा गुनसन्झिलओ व्य तस्स सीसो वा / पन्चज्ज एगपम्मी एमादी होइ णायचो // 2590 // . असतीए कलिच्चो वी तस्सऽसतीए सुएगपक्षीभो। सेत्ते उपसंपण्णे तस्यासतीए डवेयव्यो / / 2511 // सुहदक्षि. यस्स असती तस्सऽसतीए सुतोवसंपण्णो / एवं तु वियाण तहि सीसमि तु मागणा गधि // 2512 // पाडिच्छगणधरे पु. ण विए तहियं मगाणा इशामो / सुन्तत्वमडिज्जत , .भणहिज्जते इमे विभागा // 2593 // साहारणं तु पठमे बितिए वेत्तोमे तोतेए मुहडम् / अहिज्जते सीसे से. से एस्कारस विभागा // 25 // पुहि हास्स उ।। पच्छुदिदडं पाययंतस्स / / संवच्छामि पठमे परिच्छए जंतुम. चित्तं // 2515 // पुनं पच्छुट्टेि पडिच्छए जं उ होति सच्चितं। संबच्छामि बितिए तं सव्य पवाययंतस्स // २५९६॥पु. व्वं पच्छादिहे सीसंमि तु जंतु डोति सच्चितं / संवच्छामि पठमे ते सव्व गणस्स आभवति / / / 25 / / पुबुद्दिदगण - स्सा / 5 / पच्छुहिद पवाययंतस्स / / संबछरंमि बितिए सीमितु जंतु सच्चित्तं // 25 // पुवं पधुदिडे सीसंमि तु जंतु होति सच्चितं / 7 / संक्च्छरंमि ततिए ने मध्य पवाययंतस्स 25 पुबुद्दिढे गच्छे / / / पधुदिदडं पाययंतस्स / / संवच्छामि प. टमे सिस्सिणिए जतु सच्चितं // 26 // पुर्व पखुहिडे सिरिमणिय जे तु होति माध्यतं। 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎