________________ (168] श्री आगम सुधा सिंधु नवमो विभाग / हु सो परिग्गडो तू तो कि गुरुमादिणं पूया // 10 // कीरति आ. डारादीडिं ? भण्णानि भणिना नु गियमसो मा तु / तित्थंकरहिं चेर तु तेण उन्मा कीरए तेसिं ॥१८तो किं प्रयाडेतुं पवनयंतीह ति स्थगतिथं? अह कम्मकायहेतुं पुट्ठो एवं इमं आह // 12 // आहा उहि पूजादिकारणातु पकवितं नित्यं / णाणचनणाण अठा लिस्य देमिनि तिथिका नित्यं चउहा संघो तरस य देसेंति पाणमादीणि / तित्थगरणामगोजस्म सयदठा अवि यमाभवा // 189yn . . णाणे चरणे गुणकारमाणि आहारउहिमादीणि / एतेण अगुण्णातात. हिं ठितागं तु तो पूजा // 15 // एसो उजहीकप्पो बणियमो विन्य पमोत्तुणं / संभोगकय्यमेतो वोच्छामि अहं समामेणं // 16 // पुटबभ. गितो विभागो संभोगविही य दोडिं ठाणेहिं / दोमु धि पसंगदोमा में से अतिरेरापण्णवए icon दसविड सत्तविहेडिं पुबुत्तेतेहिं दोडिं ठाग्रेडिं / दोस वि पसंगदोसा ण मुंजए अण्णसंभोई // 1 // जम्डातु ण णज्जंती उग्गममादी उ जे भने दोसा / एतेण अपरिभोगो अमगुण. पणे डोति बोधवो // 18 // जं तस्य ण पत्तं तु तमहं वोच्छामि एतम तिरेग। जेतु गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं / / 1900 // . अणुकंपा मंगहे व नाभालाभेऽवि दाहया / दाबद्दवे य गेल. ब्जे कंतारे अंचिए गुरु // 1901 // बालादणुकंपणछा असह अतरंत संगहठाए / केति सलद्धि अलद्री तेर्सि माडिल्लयदठाए / / 1902 // उप्पन्ने अहिंगरणे काहिँति विउसगं तु ओजेदाही | ण य गच्छे बहिभावो उप्परओऽहंति परिभूतो / / 1903:: मझं अणेक्कभाणो ति काउ मा एस पेच्छती पुन्धि / जत्थ उकूले महल्ले लति भिवत्या महल्लीओ // 1904 // त. म्हा उ दवदवस्सा पुचि गच्छामह तु तं गेहं / एते उ परि. हरिया दोसा ह भवंति संभोगे // 1905 // गेलण्णेण व एलस हिंडितुं आणियं तु अण्णेडिं / तो साइ यामडुवग्गो कतारे आणितमडहिं / / 1906 // एमेव अंचिए वी गुज वि गेहति तु अण्णा मण्णस्स / एक्को पुण परितम्मनि बाहिरभावं व गच्छज्जा // 1907 // एते उ एवमादी संभोगमि उ गुणा भवंती 3 / तम्हा स्खलु 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎