________________ श्री पञ्चकल्प भाध्यम [153] तु गहणं बितियाम्म अब्भगुण्णातं / डेंदि परिरकणिज्जो सुडाकरो सवसाहणं / / 1611 // आदित्ति डोति कमो लिगलिग आहार उवहि सेज्जाओ / गहणं तु होति तिरिह उग्गममादी तिगनिमुद्धं // 1612 // बितियहाणापकम्यो तत्थ वि तिगमुद्धमेन घेत्तव्यं / अमती य अणुण्णात पणाणीए अमुद्धं पि // 1612 / / केण पुण कारणेणं गच्छे असुद्धं पि उंगमादीहि / घेपनि ? भण्णात सुणम् कारणमि णमो समासेणं / / १६१४॥रयणाकरोन जम्डा उ आगरो होति सजसोरमाण / णाणादण य पभो ततो उ मोस्यो उ तो रस्से 1615 // आइण्णता महाणो कानो विसमा सपनामओ दोसो / आ.. दितिगभंगगेणं गहणं भणितं पकम्मि // 1616 // लियनिक्कंतपमाणे अणुलानो चेव कारनिमित्तं / परिकम्मण परिहरणे उनही अतिरित्तगपमाणो // 1617 / / गच्छो सबालदुइ गिलाणसेहादिए. हिं आदिण्णो / एसो न महाणो न तस्स तु दुलर्भ तिगनिसुद्धं // 1624 / कालो विन्समो दुभिमसमादिदोसा सपकमभो उ इमे / पासत्यादी बहने ओमाणतो तो होति / / 1617 / / अहव अन्नविगाची जह मानाकोटदल्लगा केइ / मायाए उग्गमती सइठा अलिकोनि नवि जाये // 1620 // एतेहि कारणेडिं मलंभे आइतिगभंगगहणं तु / आदितिगम्गमादी भंगो न भंसणा होति // 21 // कारणतो तिल्डिंपी माण तू अतिक्कमेज्ज उ कदादि / किं पुण तिविहं माण? भण्णति इणमो णिसमेह // 1622 // हवती पमाणपमा खेत्तपमाणं च कानमाणं च / ए. तं निरिह पमाण अतिक्कमो तेनिमो होति // 163 // अतिरेगपमाणेणं ति. यह परेणं पिणाम गण्डेज्जा / सत्तभो अतिक्कमो न परतो वि दुगाउया मग्गे // 27 // कालपमाणातिक्कमे कज्जा पाउरणगं अकालेवि / वसती कालातीतं अभिवादणुवासणं एयंदारं // 1625 / / परिकम्मण मविहीए बलियड इडुब्बतमि कुजाहि / दुल्लभलंभे सीतेण अदियो उण्णियं मंतो // 1626 // अतिरेत्तपमाणं वा धारिज्जति कारणेटिं एएहिं / सो सम्बो पकप्पो तू णिस्कारणओ विकय्यो 3 // 1627 // संकप्पो उ इदाणि सो य पसन्यो य अप्पसस्थो या एते िदोडं पी परवा होतिमा कमसो // 1628 // दंसणनाणचरिते अणुपालण पत्यम