________________ [1541 श्री आगम सुधा सिन्धु 0 नवमो विभागः . रसन्यो उ / इंदिचन्मयकसाएस अय्यसत्यो उ संकप्यो // 16295 सणपभावनाई सत्याई कहमहं अहिज्जेज्जा / जो चिंते(ई)यं ए.. सो संकप्पो दसणे होति ।।दारं // 1630 // णाणतियारंग करेकइंचगाणं अहं अहिज्जेजा / इति णाणे चारिने सुद्धचरित्तो क. डं डोज्जा ! // 1621 // उत्तर उन्नरिएहि व चारितगुर्गा कह गु विहरेज्जा / एसो उ चरितम्मी संकटमो सस्थगो भणिओ // दारं / / 1632 // सहादिइंदियन्माण पत्थणा नह य रागगमणे नु / कोहादि. कसायाण य अज्झप्पं होति अपसन्धं // 1533 // एसो मल संकप्पो . . एतो वोच्छामहं तु उवकप्पं / उक्सप्पनी करोति उवणे व डोंति एगडा // 1634 // भत्तेण व पाणेण व उपकरणे व उनग्गह कु. पति / उक्कप्पोले गुणधारी उनकप तं रियाणाहि / / 1635 / / खडिओ मिवामिओ वा सीतभिभूतो न तरती पठिउँ / त. स्स करोति उवग्गह पहंत कुड्डस्य वा पूणा // 1626 // जो उप्याए समाहि चविह णाणमणे चरणे / तत्तो य तवममाहि तरम समे गिज्जरा होई 100 // भनेण न पाणेणं व उनक. रोणा उबगहियदेहो / जो कुणात मि समाडिं तस्सावरण हणति दाता // 4 // भन्नग्य पाणस्स 2 उपकरणस्य न उवमा इकरम्स / जो कुति अतराय तस्सावरण पवइति // 1129 // एस्सवकप्पो आणतो एनोवोच्छ अहं तु अणुकप्य / अणुसहो / तहिय पच्छाभाने मुणेय // 1140 // णाणचरणडव्याण पुव्वाय रियाण अणुकिति कुणड / अणुगच्छद गणधारी भणुकप्पं ले लिया. गाडि 80 गणमयन्महस्यकलियाण गुणत्तरत अभिलमल jोतकालभाचा आसज्ज जोगहाणी भवे // 1642 // गुणसयकलिभो स) जमो मोस्लो 8 गुणोत्तरो मुणेयम्बो / मामाधारीहा णी जोगहाणी मुणेयवा // 1653 // ताण सती अद्धाण उच्चसे कि काल बुभिको / भावे लन्नादिन्न सुद्धाभावे 3 जदमुद्धं / 16 // गेपडेज्जाहारादी गाणादी व उज्जमण कुज्जा / अणसणमासी व अकरेमाणम्म माइनस 6 एगणिज्जरा से जह भणिता मासणे निणवयाण जोगणियनमतीणं मुडमीलाणं लदो छेदो ||VER