________________ श्रीमच्चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रं : प्रा० 20 ) / 321 तारायो 1 / ता धायइसंडं णं दीवं कालोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठिए सव्वत्रो समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठइ 10 / ता कालोए णं समुद्दे किं समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए ? समचकवालसंठिए णो विसमचकवालसंठिए 11 / एवं विक्खंभो परिक्खेवो जोइसं च भाणियव्वं जाव तारायो 12 / ता कालोयगण समुह पुक्खरखरे णं दिवे वट्टे वलयागारसंठिए सव्वश्रो समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठइ 13 / ता पुवखरवरे णं दीवे किं समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए ? ता समचकवालसंठिए नो विसमचकवालसंठिए 14 / एवं विक्खंभो परिक्खेवो जोइसं जाव ताराश्रो 15 / ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स चकवालविक्खंभस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं माणुसुत्तरे णाम पव्वए वलयागारसंठिए, जे णं पुक्खरखरदीवं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्टइ, तंजहा-अभितरपुक्खरद्धं च, वाहिरपुक्खरद्धं च 16 / ता अभितरपुक्खरद्धे णं किं समचकवालसंठिए विसमचकवालसंठिए ? ता समकवालसंठिए णो विसमचकवालसंठिए 17 / एवं विक्खंभो, परिक्खेवो जोइस, ताराश्रो जाव एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं 18 / ता पुक्खरखरं णं दीवं पुक्खरोदे समुद्दे वट्टे वलयागारसंठिए जाव चिट्ठइ, एवं विक्खंभो, परिक्खेवो जोइसं च भाणियव्वं जहा जीवाभिगमे जाव सयंभूरमणे 11 // सूत्रं 100.101 // एकूणवीसतितमं पाहुडं समत्तं // 16 // // अथ विंशतितमं प्राभतम् // ___ता कहं ते अणुभावे पाहिएति वएजा ? तत्थ खलु इमायो दो पडिवत्तीयो पराणत्ताश्रो, तंजहा-तत्थेगे एवमाहंसु-ता चंदिमसूरिया णं णो जीवा, अजीवा, णो घणा, झुसिरा, णो बादरबोंदिधरा, कलेवरा, नस्थि णं तेसि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा. बलेइ वा, वीरिए इवा, पुरिसकारपरकमे इ वा, ते णो विज्जु लवंति, णो असणि लवंति, णो थणियं लवंति, अहे य