________________ श्रीमच्चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रं :: प्रा० 2 : प्रा० प्रा० ? | [ 23 पंचदसुत्तरे जोयणसये अडयालीसं च एगमद्विभागे जोयणस्स अहिया 20 / ता अभितरायो मंडलवयायो बाहिरमंडलवया बाहिरायो मंडलवयात्रो अभितरा मंडलवया, एस णं श्रद्धा केवतियं श्राहिताति वदेजा ? ता पंचनवुत्तरे जोयणसते तेरस एगट्ठिभागे जोयणस्स अाहितेति वदेज्जा 21 / अभितरायो मंडलवयायो बाहिरा मंडलवया बाहिराए मंडलवयाए अभितरमंडलवया, एम णं श्रद्धा केवइया अाहितेति वदेजा ?, ता पंचदसुत्तरे जोयणसये अाहितेति वदेजा 22 // सू० 20 // श्रट्ठम पाहुडपाहुडं पढमं पाहुडं समत्तं // 1 // // इति प्रथमप्राभृते अष्टमं प्राभृतमामृतम् // 1-8 // इति प्रथमं प्राभृतम् // 1 // // अथ द्वितीयप्राभृते प्रथमं प्राभतप्राभतम् // ता कहं ते तेरिच्छगई अाहितेति वएजा ? तत्थ खलु इमायो श्रह पडिवत्तीश्रो पराणत्तायो, तंजहा-तत्थेगे एवमाहंसु-ता पुरत्थिमातो लोयंतातो पायो मरीची पागासंसि उट्टे इ, से णं इमं लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पचत्थिमंसि लोयंतसि सायं सूरिए श्रागासंसि विद्धंसइ एगे एवमाहंसु 1, एगे पुण एवमाहंमु-ता पुरस्थिमायो लोयतात्रो पात्रो सूरिए भागासंसि उठेइ से णं इमं लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए भागासंसि विद्धंसइ, एगे एवमाहंसु 2, एगे पुण एवमाहेसु-ता पुरस्थिमानो लोयंतायो पायो सूरिए अागासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए अागासं अणुपविसइ 2 अहे पडियागच्छइ 2 पुणरवि अवरभूपुरस्थिमायो लोयंताश्रो पात्रो सूरिए पागासंसि उत्तिटुइ, एगे एवमाहंसु 3, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरस्थिमायो लोयंतायो पात्रो सूरिए पुढवित्रो उत्तिट्टइ, से णं इमं लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पञ्चस्थिमिल्लंसि लोयंतसि सायं सूरिए पुढवि