________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: सप्तमी विभागः // सूत्रं 138 // जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरियाणं किं तीते खित्ते किरिया कन्जइ पडुप्पाणे खित्ते किरिया कन्जइ अणागए खित्ते किरिया कन्जइ ?, गोमा ! णो तीए खित्ते किरिया कन्जइ पडुप्पराणे खित्ते किरिया कजइणो अणागए खित्ते किरिया वजइ 1 / सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ अपुट्ठा कन्जइ ?, गोत्रमा ! पुट्ठा कजइ णो अणापुट्ठा कन्जइ जाव णित्रमा छदिसिं 2 // सूत्रं 131 // जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उद्धं तवयंति अहे तिरियं च ?, गोत्रमा ! एगं जोअणसयं उद्धं तवयंति अट्ठारससयजोषणाई अहे तवयंति सीयालीसं जोश्रणसहस्साई दोरिण अ तेवढे जोश्रणसए एगवीसं च सट्ठिभाए जोपणस्स तिरियं तवयंतित्ति 13 // सूत्रं 140 // अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरिश्र-गहगण-गक्खत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उद्घोववरणगा कप्पोववरणगा विमाणोववरणगा चारोववराणगा चारट्टिईथा गइरइया गइसमावराणगा ?, गोत्रमा ! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरिय जाव तारारुवे ते णं देवा णो उद्धोववरणगा णो कप्पोववरणगा विमाणोववरणगा चारोववरणगाणो चारट्टिईया गइरइया गइसमावराणगा उद्धीमुह-कलंबुवापुप्फ-संठाणसंठिएहिं जोअणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं साहस्सियाहिं वेउव्विग्राहिं बाहिराहिं परिसाहिं महयाहय-गट्ट-गीत्र-वाइनतंती-तल-ताल-तुडिर-घण-मुइंग-पडुप्पवाइअरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणा महया उकिट्टि-सीहणाय-बोल-कलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्त-मराडलचारं मेरु अणुपरिघट्टति 14 // सूत्रं 141 // तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेंति ?, गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं गणं उवसंपजित्ता णं विहरंति जाव तत्थ अरणे इंदै अवराणे भवइ 1 / इंदट्ठाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए ?, गोयमा ! जहराणेणं एगं समयं