________________ 74 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। षष्ठो विभागः मणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं // 168 // केवलनाणुवउत्ता जाणंति सव्वभावगुणभावे / पासंति सब्बयो खलु केवलदिट्ठीहिऽणताहि // 161 // नवि अस्थि माणुसागां तं सुक्खं नवि य सव्वदेवाणां / जं सिद्धागां सुक्खं श्रब्धाबाहं उवगयाणं // 170 // सुरगणसुहं समतं सम्बद्धापिडियं श्रणंतगुणं / नवि पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं वग्गवग्गूहि // 171 // सिद्धस्स सुहो रासी सम्बद्धापिडियो जइ हवेजा / सोऽणंतवग्गभइयो सव्वागासे न माइजा // 172 // जह णाम कोइ मिच्छो नगरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए // 173 // इय सिद्धाणं सोक्खं श्रणोवमं नत्थि तस्स श्रोवम्मं / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमियां सुणह वोच्छं // 174 // जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई / तराहाछुहाविमुक्को अच्छिज जहा अमियतित्तो // 17 // इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता // 176 // सिद्धत्ति य बुद्धति य पारगयत्ति य | परंपरगयत्ति उम्मुक्तकम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 177 // निच्छिन्न-सव्वदुक्खा जाइजरा-मरणबंधण-विमुक्का / अव्वाबाहं सोक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा // 178 // // सू०५४ // इति पराणवणाए भगवईए वितीयं गणपयं समत्तं // // इति द्वितीयं पदम् // 2 // // अथ श्री अल्पबहुत्वाख्यं तृतीयं पदम् // दिसि गइ इंदिय काए जोए वेए कसाय लेसा य / सम्मत्त नाणदंसण संजय-उवयोग-याहारे // 17 // भासग-परित्त-पजत्त सुहुमसन्नी भवऽथिए चरिमे / जीवे य खित्तवंधे पुग्गल-महदंडए चेव // 180 // दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा जीवा परिछमेणं, पुरच्छिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया / सू० 55 // दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा