________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् // पदं 34 ] [ 371 7 / नेरइयाणं भंते ! श्रोही कि प्राणुगामिते अणाणुगामिते वढमाणते हीयमाणए पडिवाई अप्पडिवाई अवट्ठिए अणवट्ठिए ?, गोयमा ! श्राणुगामिए नो अणाणुगामिए नो वद्धमाणते नो हीयमाणए नो पडिवाई अप्पडिवाई श्रवट्ठिए नो अणवट्टिए, एवं जाव थणियकुमाराणं / पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! श्राणुगामितेवि : जाव अणवट्ठिएवि, एवं मणूसाणवि, वाणमंतरजोतिसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं 1 / // सूत्रं 311 / 2 // पराणवणाए श्रोहिपदं समत्तं // .. // इति त्रयस्त्रिंशतमं पदम् // 33 // // अथ प्रवीचारपरिणामाख्यं चतुस्त्रिंशत्तमं पदम् // अणंतरगयाहारे 1, थाहारे भोयणाइय 2 / पोग्गला नेव जाणंति 3, अज्झवसाणा 4 य श्राहिया // 1 // सम्मत्तस्साहिगमे 5 तत्तो परिया रणा 6 य बोद्धव्वा / काए फासे रुवे सद्दे य मणे य अप्पबहुं॥ 2 // . . नेरइया णं भंते ! अणंतराहारा ततो निव्वत्तणा ततो परियाइणया ततो परिणामणाया ततो परियारणया तो पच्छा विउवणया ?, हंता ! गोयमा ! नेरइयाणं अणंतराहारा ततो निव्वत्तणया ततो परियादियणया ततो परिणामणया तो परियारणया तो पच्छा विउठवणया 1 / असुरकुमारा णं भंते ! अणंतराहारा ततो निव्वत्तणया ततो परियाइणया ततो परिणामणया ततो विउव्वणया तो पच्छा परियारणया ?, हंता ! गोयमा ! असुरकुमारा श्रणंतराहारा ततो निव्वत्तणया जाव ततो पच्छा परियारणया, एवं जाव थणियकुमारा 2 / पुढविकाइया णं भंते ! अणंतराहारा ततो निव्वत्तणया ततो परियाइणया ततो परिणामणया ततो परियारणया ततो विउव्वणया ?, हंता ! गोयमा ! तं चेव जाव परियारणया नो चेव णं विउव्वणया 3 / एवं जाव चउरिंदिया, नवरं वाउकाइया पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिया मणूसा