________________ 360 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / षष्ठो विमागः क्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिता नो संजता असंजतावि संजतासंजतावि नो नोसंजत-नोअसंजत-नोसंजतासंजतावि 3 / मणुस्साणं पुच्छा, गोयमा ! मणूसा संजतावि असंजतावि संजतासंजतावि नो नोसंजतनोअसंजत-नोसंजतासंजता, वाणमंतरजोतिसियवेमाणिया जहा नेरइया 4 / सिद्धा णं पुच्छा, गोयमा ! सिद्धा नो संजता 1 नो असंजता 2 नो संजतासंजता 3 नोसंजतनोसंजतनोसंजतासंजता 4, 5 / गाहा “संजयअंसंजय मीसगा य जीवा तहेव मणुया य / संजतरहिया तिरिया सेसा.. अस्संजता होंति // 1 // " // सूत्रं 316 // संजयपयं समत्तं // . // इति द्वात्रिंशत्तमं पदम् // 32 // // अथ ज्ञानपरिणामाख्यं त्रयस्त्रिंशत्तमं पदम् // .. भेदविसयसंठाणे अभितरबाहिरे य देसोही। श्रोहिस्स य खयवुड्डी पडिवाई चेव अपडिवाई // 1 // कइविहा णं भंते ! श्रोही पराणत्ता ?, गोयमा ! दुविहा श्रोही पन्नत्ता, तंजहा-भवपञ्चइया य खोवसमिया य, दोराहं भवपच्चइया, तंजहा-देवाण य नेरइयाण य, दोराहं खयोवसमिया, तंजहा–मणूसाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण य॥ सूत्रं 317 // नेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं श्रोहिणा जाणंति पासंति ?, गोयमा ! जहरणेणं अद्धगाउयं उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई श्रोहिणा जाणंति पासंति 1 / रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं खेत्तं श्रोहिणा जाणंति पासंति ?, गोयमा ! जहराणेणं अछुट्टाई गाउयाई उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं श्रोहिणा जाणंति पासंति 2 / सकरप्पभापुढविनेरझ्या जहराणेणं तिरिण गाउयाई उक्कोसेणं अद्भुट्ठाई गाउयाई बोहिणा जाणंति पासंति 3 / वालुयप्पभापुढविनेरइया जहराणेणं श्रद्धाइजाई गाउयाई उक्कोसेणं तिरिण गाउयाइं योहिणा जाणंति पासंति 4 / पंकप्पभापुढविनेरइया जहरणेणं दोरिण गाउयाई