________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् :: पदं 21 / [ 263 नेरइयाउं पकरेमाणे जहराणेणं दस वाससहस्साई उकोसेणं पलियोवमस्स असंखेजइभागं पकरेति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं पलितोवमस्स असंखेजइभागं पकरेति, एवं मणुस्साउयंपि 2 / देवाउयं जहा नेरइयाउयं 3 / एयस्स णं भंते ! नेरइयअसरिणयाउयस्स जाव देव-असरिण-याउयस्स कतरे 2 हितो अप्पा वा 4.?, गोयमा ! सव्वत्थोवे देवसरिणयाउए मणूस-श्रसरिणअाउए असंखेज़गुणे तिरिक्खजोणिय-असरिणयाउए असंखेजगुणे नेरझ्यअसगिणयाउए असंखेजगुणे 3 // सूत्रं 266 // पराणवणाए भगवइए वीसइमं अंतकिरिया-पदं समत्तं // . // इति विंशतितमं पदम् // 20 // // अथ अवगाहन-संस्थान-(शरीर)-नामकं . एकविंशतितमं पदम् // विहिसंठाणपमाणे 1-3 पोग्गलचिणणा 4 सरीरसंजोगो 5 / दव्वपएसऽप्पबहुं 6 सरीरोगाहणप्पबहुं 7 // 1 // 1 / कति णं भंते ! सरीरया पराणत्ता ?, गोयमा ! पंच सरीरया पन्नत्ता, तंजहा-बोरालिए 1 वेउविए 2 श्राहारए 3 तेयए 4 कम्मए 5, 2 / थोरालियसरीरे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?, गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तंजहा-एगिदिय ओरालियसरीरे जाव पंचिंदिय-रोरालियसरीरे 3 / एगिदिय-पोरालियसरीरे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?, गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहापुढविकाइय-एगिदिय-श्रोरालियसरीरे जाव वणप्फइकाइय-एगिदिय-धोरालियसरीरे 4 / पुढविकाइय-एगिदिय-बोरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-सुहुम-पुढविकाइय-एगिदिय-थोरालियसरीरे बादर-पुढविकाइय-एगिदिय-शोरालियसरीरे य 5 / सुहुम-पुढवि